सबको जीवन देने वाली करती सदा भलाई रे ।
कल-कल करती नदिया कहती, मुझे बचा लो भाई रे ।।
मर्यादा में बहने वाली, होकर अमृत धारा,
प्यास बुझाती हूँ उसकी, जिसने भी मुझे पुकारा,
परहित का जीवन है अपना, मत बनिए सौदाई रे ।
कल-कल करती नदिया कहती, मुझे बचा लो भाई रे।
तब मन में पाला था सपना
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