सबके दुख का कारण भरत किसे मानते हैं और क्यों
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पुराणों और इतिहासकारों के अनुसार आदि रूप ब्रह्मा जी से मरीचि का जन्म हुआ। मरीचि के पुत्र कश्यप हुये। कश्यप के विवस्वान और विवस्वान के वैवस्वतमनु हुये। वैवस्वतमनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुये। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुये। कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुये। अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ। त्रिशंकु के पुत्र धुन्धुमार हुये। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुये और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुये - ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुये। भरत के पुत्र असित हुये और असित के पुत्र सगर हुये। सगर के पुत्र का नाम असमंज था। असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुये। दिलीप के पुत्र भगीरथ हुये, इन्हीं भगीरथ ने अपनी तपोबल से गंगा को पृथ्वी पर लाया। भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुये। रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया।
Answer:
सब के दुःख का कारण भरत स्वयं को ही मानते है क्योंकि
Explanation:
माता कैकेयी ने पुत्र मोह मे आकर राजा दशरथ से अपने दो वरदान मे श्री राम जी को चौदह वर्ष के लिए वन वास और भरत के लिए अयोध्या का राजा माँगा था। माँ कैकेयी की इस भयंकर भूल के कारण श्री राम जी को चौदह वर्ष के लिए वन जाना पड़ा और इसके कारण श्री राम जी के पिता राजा दशरथ जी इस दुख में वह अस्वस्थ्य हो गए तथा मृत्यु को हो गई। भरत ने इन सब का दोष अपनी माँ कैकेयी को माना था किंतु बाद मे उन्हें पश्चाताप हुआ की उन्हें अपनी माँ के लिए ऐसे कठोर वचनो का प्रयोग नही करना चाहिए वह गलत है इन सब के लिए वह स्वयं ही जिमेदार है क्योंकि यदि वह न होते, तो माता ऐसा कभी भी न करती। और न ही भ्राता श्री राम को वन वास जाना पड़ता।