Hindi, asked by souranjana1979, 7 hours ago

सबद किसे कहते हैं? कबीर के दोनों सबद का सारांश लिखिए?​

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Answered by chetanajha8928
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Answer:

सबद या शब्द का प्रयोग हिंदी के संत-साहित्य में बहुलता से हुआ है। बड़थ्वाल ने गरीबदास के आधार पर लिखा है कि "शब्द, गुरु की शिक्षा, सिचण, पतोला, कूची, बाण, मस्क, निर्भयवाणी, अनहद वाणी, शब्दब्रह्म और परमात्मा के रूप में प्रयुक्त हुआ है"

"सबद" या "शब्द" प्राय: गेय होते हैं। अत: राग रागिनियों में बँधे पर "सबद" या शब्द कहते जाते रहे हैं। सिद्धों से लेकर निर्गुणी, सगुणी सभी संप्रदाय के संत अथवा भक्तों ने विविध राग रागिनियों में पदरचना की है। परंतु प्रत्येक गेय पद सबद नहीं कहा जाता। संतों की अनुभूति "सबद" कहलाती है। कबीर की रचनाओं में "सबद" का बहुत प्रयोग हुआ है और भिन्न भिन्न अर्थों में हुआ है। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अपने "हिंदी साहित्य का आदिकाल" शीर्षक ग्रंथ में लिखा है, संवत् 1715 की लिखी हुई एक प्रति से संगृहीत और गोरखबानी में उद्धृत पदों को "सबदी" कहा गया है। कबीर ने संभवत: वहीं से "सबद" ग्रहण किया होगा।"

नाथों का व्यापक प्रभाव केवल उनके मत या विचारों तक ही सीमित नहीं रहा, उनकी अभिव्यक्ति के विविध प्रकारों ने भी उनके परवर्ती हिंदी संतों को प्रभावित किया है। संत तो प्राय: जनता में प्रचलित भावप्रकाश की शैली को और भाषारूप को अपनाया करते हैं जिससे उनके विचार शीघ्र ही उसमें संचरित हो सकेंनाथों ने सिद्धों से और विभिन्न संप्रदायों संतों ने नाथों से यदि "सबद" या पद शैली ग्रहण की तो यह स्वाभाविक ही था। निर्गुणी संतों के "साखी" और "सबद" अत्यधिक प्रचलित हुए। कई बार ये दोनों शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची बनकर भी व्यवहृत होते रहे। बड़थ्वाल का मत है कि "विषय की दृष्टि से इन दोनों में बहुधा कुछ अंतर लक्षित होता है। "सबद" का प्रयोग भीतरी तथा अनुभव आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है और साखी का प्रयोग दैनिक जीवन में लक्षित होनेवाले व्यावहारिक अनुभव को स्पष्ट करने में हुआ करता है।" इसका अर्थ यह हुआ कि "सबद" आत्मानुभूति है और साखी बाह्यानुभूति। परंतु संत वाङ्मय के अनुशीलन से "साखी" और "सबद" का यह भेद सदा परिलक्षित नहीं होता। स्वयं बड़थ्वाल ने भी एक स्थल पर स्वीकार किया कि "कभी कभी इनमें से एक दूसरे की जगह भी व्यवहृत हुआ देखा जाता है। "सबद के संबंध में एक बात निश्चित है कि उन्हें राग रागिनियों में कहने की पुरानी परिपाटी रही है। इसी से कबरी के "सबद" विषयों के अनुसार विभाजित न होकर राग रागिनियों के अनुसार अधिक विभाजित पाए जाते हैं।

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