सच्चे बहादरु ही बहादरु ी िो सलाम िरते हैं। " अपने शब्दों में मलखो।
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लेखक की माँ सूरज ढलने के बाद पेड़ों से पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं। उनका कहना था कि इससे पेड़ रोते हैं, बदुआ देते हैं।
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