'सच्चा हीरा' कहानी मेंज्ञान के साथ-साथ ककस को महत्व कदया गया है?
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सच्चा हीरा
सूर्य अस्त हो रहा था। पक्षी चहचहाते हुए अपने-अपने नीड की ओर जा रहे थे। गाँव की कुछ स्त्रियाँ पान लेने के लिए बड़े लेकर कुएँ की ओर चल पड़ी। पानी भरकर कुछ कियाँ तो अपने घरों को लौट गई परन्तु उनमें से चार, कुएँ की पक्की जगत पर बैठकर आपस में इधर उधर की बातें करने लगी। बातचीत करते-करते बात बेटों पर जा पहुँची उनमें से एक की उम्र सबसे बड़ी लग रही थी। वह कहने लगी, "भगवान सबको मेरे बेटे जैसा बेटा दे। मेरा बेटा लाखों में एक है। उसका कंठ बहुत मधुर है। वह बहुरा अच्छा गाता है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। लोग बड़े चाव से उसका गीत सुनते हैं।"
उसकी बात सुनकर दूसरी स्त्री का मन हुज कि वह भी अपने बेटे की प्रशंसा करे। उसने पहली स्त्री से कहा," मेरे बेटे को बराबरी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत ही शक्तिशाली और बहादुर है। वह बड़े-बड़े बहादुरों को भी पछाड़ देता है। वह आधुनिक युग का भोम है।' ' यह सब सुनकर तीसरी औरत भला कैसे चुप रहती? वह बोल उठी, "मेरा बेटा साक्षात बृहस्पति का अवतार है। वह जो कुछ पढ़ता है, एकदम याद कर लेता है। ऐसा लगता है मानो उसके कंठ में सरस्वती का निवास हो।"
तीनों औरतों की बातें सुनकर चौथी स्त्री चुपचाप बैठी रही उसने अपने बेटे के बारे में कुछ न कहा। पहली ने उसे टोकते हुए कहा, "क्यों बहन तुम क्यों चुप हो? तुम भी तो अपने बेटे के बारे में कुछ बताओ." चौथी स्त्री ने बड़े ही सहज भाव से कहा, "मैं अपने बेटे की क्या प्रशंसा करूँ वह न तो गंधर्व—सा गायक है, न भीम-सा बलवान और न ही बृहस्पति—सा बुद्धिमान।"
कुछ समय बाद जब वे सब घड़े सिर पर रखकर लौटने लगी, तभी किसी गीत का मधुर स्वर सुनाई पड़ा। सुनकर पहली स्त्री बोली, "सुनी, मेरा हीरा गा रहा है। तुम लोगों ने सुना, उसका कंठ कितना मधुर है?" वह लड़का गीत गाता हुआ उसी रास्ते से निकल गया। उसने अपनी माँ की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इतने में दूसरी स्त्री का बेटा उधर से आता दिखाई दिया। दूसरी स्त्री उसे देखकर गर्व से बोली, "देखो, वह मेरा लाडला बेटा आ रहा है। शक्ति और सामर्थ्य में इसकी बराबरी कौन कर सकता है?" वह यह कह ही रही थी कि उसका बेटा भी उसकी ओर ध्यान दिए बिना ही निकल गया।
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