Hindi, asked by aasthaarya620, 5 months ago

सच है जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण दोष प्रकट नहीं होता सप्रसंग व्याख्या करें​

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Answered by shishir303
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सच है जब तक मनुष्य बोलता नहीं तब तक उसका गुण दोष प्रकट नहीं होता।

सप्रसंग व्याख्या ► यह पंक्तियां ‘बालकृष्ण भट्ट’ द्वारा रचित निबंध “बाचचीत” से ली गई हैं। इन पंक्तियों का आशय इस प्रकार है।

इन पंक्तियों में लेखक ने यह कहने का प्रयास किया है कि किसी भी तरह की बातचीत करने का एक विशेष तरीका होता है और उस तरीके के कारण व्यक्ति के गुण एवं दोष का पता चलता है। प्रेम और सद्भाव से बातचीत कर बातचीत का पूरा लाभ उठा सकता है, और वाद-विवाद के करके वातावरण को कटुतापूर्ण भी किया जा सकता है। जो व्यक्ति बातूनी प्रवृत्ति और चंचल मनोवृति के होते हैं, उनके बातचीत में दोष होता है। जबकि कोई व्यक्ति गंभीरता और सलीके से बातचीत करता है तो उसका ये गुण उत्तम बन जाता है।

जब तक मनुष्य चुप है, उसके चरित्र और गुण-दोष दबे रहते हैं, लेकिन जब व्यक्ति बोलना शुरू कर देता है तो उसका स्वभाव पता लगने लगता है कि वह गंभीर प्रवृत्ति का है या चंचल प्रवृत्ति का। क्योंकि किसी भी व्यक्ति के बातचीत करने की शैली से ही उसके स्वभाव का अनुमान लगाया जा सकता है, इसलिए व्यक्ति के बोलने की प्रवृत्ति उसके गुण व दोष की पहचान बनती है। बोलने से मनुष्य का साक्षात्कार होता है और उसकी स्वयं की पहचान बनती है, और चुप रहने से उसकी पहचान बाहर नहीं आ पाती।

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Answered by ak5417328
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jab tak man ke bolata nahin tab tak use prakat nahin hota Insan

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