सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते।
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुँह से कभी न उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं,
जो आ पड़ता है सब सहते हैं,
उदयोग-निरत नित रहते हैं।
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
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he is only paragraph
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Nice and tremendous poem.
I think this is for our doctors, police, Indian defence and all the people of India.
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