सच है, विपत्ति जब आती है.
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते.
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत रत रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते है।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोंक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब ज़ोर लगाता है.
पत्थर पानी बन जाता है।
please give summary of this poem in hindi please!!! I will mark branliest
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कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते.
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत रत रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते है।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मगकायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते.
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं।
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग-निरत रत रहते हैं,
शूलों का मूल नसाते हैं,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते है।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग
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I don't know
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I don't know
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