सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
संधि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की।
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सच पूछो, तो शर में ही, बसती है दीप्ति विनय की। संधि-वचन संपूज्य उसी का, जिसमें शक्ति विजय की। सहनशीलता, क्षमा, दया को, तभी पूजता जग है। बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग
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