सफल विदयाथी की आत्मकथा
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विद्यार्थी के तौर पर भूमिका:
और मैंने यह सफर जब मैं 3 वर्ष का था तब प्रारंभ किया मेरा जन्म उत्तराखंड के पहाड़ी विभाग में हुआ वहीं से मैंने अपनी स्कूल का पहला दिन एक विद्यार्थी के तौर पर आरंभ किया। आज़ जब विद्यालय में पढ़ते हुए १० वर्ष व्यतीत हो गए हैं, तब सोचता हूँ कि यह विद्यार्थी जीवन सचमुच कितना मूल्यवान है ।
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Explanation:
मेरे घर वाले मुझे कितना प्रलोभन दिया करते थे। कभी मिठाई का, कभी कपड़ों का, कभी खेल खिलौनों का । और मैं था कि पढ़ाई के नाम पर इन सब प्रिय चीजों से भी भागता फिरता था । लेकिन अब जव में इतना आगे वढ़ आया हूँ, तो पिछले वीते हुए दिन याद आकर मन- प्राणों में सुख सा वरसा देते हैं
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