History, asked by suchikumari464, 10 hours ago

सगुण की क्या भक्ति है​

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Answered by rajakraj240
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गीता के 12वें अध्याय में भगवान कृष्ण ने निर्गुण और सगुण भक्ति का उल्लेख करते हुए सगुण भक्ति को अति सरल और शीघ्र फलदायी बताया है। भाव की तीव्रता, प्रेम की अधिकता उस अनंत, निराकार को भक्त के सन्मुख साकार होने को विवश कर देती है। ... भगवान बार-बार कहते हैं कि मैं अपने अनन्य भक्तों के वश में हूं।

Answered by nileshsirvi201
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गीता के 12वें अध्याय में भगवान कृष्ण ने निर्गुण और सगुण भक्ति का उल्लेख करते हुए सगुण भक्ति को अति सरल और शीघ्र फलदायी बताया है। मनुष्य का स्वयं को शरीर या अपने वर्तमान व्यक्तित्व से पृथक मानना और केवल आत्मा रूप समझना अत्यंत ही कठिन है। अत: प्रभु कहते हैं कि तू मुझसे प्रेम कर, मेरी भावना किसी भी प्रतीक में कर। वह प्रतीक प्राकृतिक सूर्य आदि या प्रस्तर पीतल, चांदी आदि धातुओं की मूर्ति में या चित्र आदि में कर। तेरा प्रेम उन प्रतीकों में मुझको जीवन कर देगा और तू मुझे पाकर निहाल हो जाएगा। जन्म-जन्म के क्लेशों से मैं तुझे मुक्त कर अपने में एकाकार कर लूंगा। मीरा, चैतन्य आदि अनेक उदाहरण मौजूद हैं। इन प्रतीकों की अर्चना, वंदना, स्पर्श, स्तुति आदि अनेक भावों द्वारा की जा सकती है। जैसे स्वामी-दास भाव, सखा भाव, प्रियतम-प्रेमी भाव, वात्सल्य भाव, पिता-पुत्र भाव, रक्षक भाव, दाता-याचक भाव आदि। भाव की तीव्रता, प्रेम की अधिकता उस अनंत, निराकार को भक्त के सन्मुख साकार होने को विवश कर देती है। भगवान बार-बार कहते हैं कि मैं अपने अनन्य भक्तों के वश में हूं। यशोदा उन्हें बांधती हैं तो गोपियां नचाती हैं। अर्जुन के लिए सारथी बनता हूं। वेदों में वर्णित सभी देवताओं, प्रकृति के रूपों जैसे सूर्य, वायु, वर्षा आदि उसी एक परमात्मा के प्रतीक या मूर्ति हैं, जिनकी मंत्रों द्वारा स्तुति की गई है। भागवत केअनुसार सब जीवों में उपस्थित आत्मा मैं ही हूं। इसलिए जो पत्थर या धातु की मूर्ति की तो पूजा करते हैं और प्राणियों का अनादर करते हैं मैं उनसे प्रसन्न नहीं होता और जो प्राणियों की अन्न, जल या औषधि से सहायता करते हैं या सम्मान देते हैं वे उनमें मौजूद मुझे ही प्रदान करते हैं। अत: प्राणियों की सहायता करना और सम्मान देना सबसे श्रेष्ठ सगुण भक्ति है, जो शीघ्र और सुनिश्चित फलदायी है। आइए हम सभी जीवों का परोपकार और आदर देकर आत्मिक आनंद को प्राप्त करें।

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