सगुण काव्यधारा की विशेषताएं
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सगुण भक्ति का अर्थ है- आराध्य के रूप – गुण, आकर की कल्पना अपने भावानुरूप कर उसे अपने बीच व्याप्त देखना. सगुण भक्ति में ब्रह्म के अवतार रूप की प्रतिष्ठा है और अवतारवाद पुराणों के साथ प्रचार में आया. इसी से विष्णु अथवा ब्रह्म के दो अवतार राम और कृष्ण के उपासक जन-जन के ह्रदय में बसने लगे. राम और कृष्ण के उपासक उन्हें विष्णु का अवतार मानने की अपेक्षा परब्रह्म ही मानते हैं, इसकी चर्चा यथास्थान की जाएगी.
कृष्ण काव्य : अनुभूति एवं अभिव्यक्तिगत विशेषताएँ
भक्तिकाल की सगुण काव्य धरा के अंतर्गत आराध्य देवताओं में श्रीकृष्ण का स्थान सर्वोपरि है. वेदों में श्रीकृष्ण का उल्लेख हुआ है, ऋगवेद में कृष्ण (आंगिरस) का उल्लेख है. पुराणों तक आते- आते राम और कृष्ण अवतार रूप में प्रतिष्ठित हो गए. श्रीमद्भाग्वद्पुराण में उन्हें पूर्ण ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया है.
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भक्तिकाल या पूर्व मध्यकाल हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण चरण है, जिसे 'स्वर्णयुग' के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों द्वारा वर्ष 1375 से 1700 के बीच में इस समय की अवधि को मान्य किया गया है। हालांकि, राजनीति, सामाजिक, धार्मिक, दार्शनिक, साहित्यिक संदर्भों में संघर्षों से भरा हुआ है, इस अवधि के दौरान भक्ति की धारा प्रवाहित हुई। इतिहासकारों ने इसे दृढ़ता से भक्ति कहा।
पुण्य भक्ति के साधनों को आराध्य के गुणों द्वारा समझा जा सकता है, और स्वयं की कल्पना करके इसे लोगों के बीच फैलाने के लिए कल्पना की जा सकती है। सगुण भक्ति में भगवान ब्रह्मा के सीमांकन की छवि है और यह छवि पुराणों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके कारण, विष्णु या ब्रह्मा के पुनर्जन्म लोगों के मन में राम और कृष्ण के अनुयायियों के रूप में बसने लगे। राम और कृष्ण के पिता परब्रह्म को विष्णु का अवतार मानते थे