सह शिक्षा पर निबन्ध
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itna bda nibhane yha kon lekhata
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सहशिक्षा से तात्पर्य लड़कों व लडकियों का विद्यालय में एक साथ अध्ययन करना है। हमारे देश में अनेक रूढ़िवादी लोग लंबे समय से सहशिक्षा का विरोध करते चले आ रहे हैं परंतु समय के बदलाव के साथ अब यह धीरे-धीरे कार्यान्वित हो रही है ।
इसमें विज्ञान का योगदान अधिक है जिसने मनुष्यों को अपनी पुरातनपंथी सोच में बदलाव लाने का महती प्रयास किया है । सहशिक्षा का इतिहास हमारे देश के लिए नया नहीं है । प्राचीन काल के गुरुकुलों व आश्रमों में सहशिक्षा की प्रथा प्रचलित थी । उस समय में स्त्री और पुरुष को समान दृष्टि से देखा जाता था ।
हिंदू समाज के धर्मग्रंथों व पुराने तत्वों से इसके प्रचलित होने के अनेक उदाहरण मिलते हैं परंतु देश में मुसलमानों के आगमन के पश्चात् स्थिति में काफी परिवर्तन हुआ । मुस्लिम समाज में प्रचलित परदा प्रथा के चलते धीरे-धीरे सहशिक्षा का प्रचलन लुप्त होता चला गया ।
देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने इसके विरोध में मत दिए हैं । इसके विरोध में किसी अंग्रेज शिक्षाशास्त्री ने कहा है कि ”औरत के समीप होने पर पुरुष अध्ययन नहीं कर सकता है ।” विरोध में कुछ अन्य लोगों का मत है कि सहशिक्षा वातावरण में अराजकता को जन्म देती है । लड़के-लड़कियाँ विपरीत यौनाकर्षण के चलते अध्ययन में कम अपितु प्रेम व भ्रमित वातावरण की ओर अधिक आकर्षित होते हैं ।
समय-समय पर कुछ स्वार्थलोलुप अध्ययनों व छात्र-छात्राओं के अवैध संबंधों की खबरें भी सहशिक्षा के विरोध को प्रबल समर्थन देती हैं । कुछ अन्य लोगों की धारणा है कि सहशिक्षा विद्यालय में अव्यवस्था का वातावरण उत्पन्न करती है । कुछ व्यक्तियों की क्षुब्ध धारणा है कि सहशिक्षा से छात्रों के मस्तिष्क में विचलन की संभावना बहुत अधिक रहती है ।
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