sahaj pake so mitha hoye story in hindi
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do it yourself please......
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बीज बोते ही पौधा उत्पन्न नहीं होता और पौधे के उत्पन्न होते ही फल नहीं लगते। जीवन में मनुष्य धीरे-धीरे लेकिन निरन्तर काम करने से ही सफल होता है। खरगोश की अपेक्षा धीरे-धीरे निरन्तर चलने वाला कछुआ इसीलिए विजयी हुआ ओर तेज़ भागने वाला खरगोश हार गया।
एक खरगोश और एक कछुआ दोनो में घनिष्ठ मित्रता थी। खरगोश की अपनी तेज़ चाल पर बहुत अभिमान था और कछुए की धीमी चाल का वह बहुत मजाक उड़ाया करता था। एक दिन खरगोश ने कछुए को नीचा दिखाने की भावना से उससे कहा – आओ मित्र दौड़ लगाएं। देखें कौन जीतता है ?” कछुआ भी खरगोश की अपमान भरी बात को कब सहन करने वाला था। उसने खरगोश की चुनौती को स्वीकार किया। एक मील पर पड़ी एक चट्टान को लक्ष्य बिन्दु माना गया। स्पष्ट था कि जो वहां तीव्र गति से अथवा पहले पहुंच जाएगा वह जीत जाएगा, पीछे रहने वाला हार जाएगा।
निश्चित समय पर दौड़ प्रारम्भ हुई। कहां तेज़ दौड़ने वाला खरगोश और कहा मन्द गति से चलने वाला कछुआ। खरगोश तो अपनी तीव्र गति से कुछ ही मिनटों में कहीं का कहीं पहुंच गया परन्तु कछुआ धीरे-धीरे अपने गन्तव्य-स्थल की ओर बढ़ रहा था।
खरगोश ने सोचा–कछुआ तो अभी पीछे ही होगा। घण्टों में यहां पहुंचेगा। क्यों न तब तक मैं इस वृक्ष की छाया में थोड़ा आराम कर लें। कैसी ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही। यह विचार कर खरगोश उस वृक्ष की छाया में लेट गया और गहरी नींद में सो गया।
कुछ देर बाद कछुआ वहाँ आ पहुंचा। खरगोश को वहाँ सोया देख कर मन ही मन बहुत खुश हुआ। और निरन्तर आगे बढ़ता रहा। कछुआ अपने लक्ष्य बिन्दु तक खरगोश से पहले पहुंच गया।
उधर कुछ देर बाद खरगोश की नींद टूटी। वह हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ। बड़ी तेज़ गति से चट्टान तक पहुंचा तो कछुआ को वहाँ पहले पहुंचा देख बहुत हैरान हुआ। उसे अपने ऊपर बड़ा क्रोध आय के मार्ग में वह सो क्यों गया ? पर अब क्या हो सकता था? बाजी तो कछुआ जीत चुका था। अतः सत्य है कि धीमे किन्तु निरन्तर आगे बढ़ने वाला दौड़ जीत ही लेता है।
शिक्षा – घमण्डी का सिर नीचा
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