सहर्ष स्वीकारा है कविता कविता में कवि क्या दंड मांग रहा है
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दंड मांगने का कारण यह है कि कभी अपने प्रिय पर अपनी निर्भरता से मुक्त होकर आत्म शक्ति प्राप्त करना चाहता है वह असीम निर्भरता को दुख देने लगी है इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि वह अपने प्रिय के अस्तित्व से आच्छादित अपने अस्तित्व को समाप्त करने का दंड चाहता है कभी अपने प्रेस निवेदन करता है कि वह उसे दान दे दे कभी याचना सच्चे मन से कर रहा है कभी चाहता है कि अपनी चारों और गिरे हुए प्रिय मध्य उजालों से मुक्त होकर वह घने अंधकार से भरी पता ली गुफा में सुनें अंधेरा भी लो मैं दरारों में गानों दुआ से बने बादलों में लापता हो जा गायब हो जा छुप जा लापता होने पर भी कभी-कभी अपनी का सहारा रहेगा व्हाई इस अकेलेपन के धन को अंधकार में रहकर भी अपने प्री की स्मृति के सारे साला सरलता से जेल थकेगा कभी जानता है कि उसका स्थित है उसके प्रियतम के कारण नहीं है अब तक उसने जीवन में जो कुछ पाया है अथवा जो कुछ उसे अपना सा लगता है अथवा जो कुछ उसके होने की संभावना है वह सब प्रियतम के कारण या कवि ने जीवन में जो कुछ कार्य किया जिन कार्यों के लिए जाना जाता है उसे सब कार्यों का प्रेरणा स्रोत उसका प्रिय ही उसके जीवन में जो कुछ पहले तथा आज जो कुछ भी उसके पास उस सब को उसने प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया क्योंकि कभी की हर उपलब्धियां अच्छी या बुरी सब उसके प्रीतम को प्यारी लगती है
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