सहर्ष स्वीकारा है कविता में कवि की आत्मा कैसी दी गई है
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सहर्ष स्वीकारा है' नामक कविता से अवतरित है। कवि अपने विशिष्ट प्रिय को संबोधन कर कह रहा है कि अब उसके जीवन का वह पड़ाव आ पहुँचा है कि जो ममता रूपी कोमलता कभी उसके हृदय को स्पर्श करते ही आनंद विभोर कर देती थी, जिसमें डूबकर वह आनंदमग्न हो सब कुछ विस्मृत कर देता था।
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