Sahitya aur jivan ka ghor sambandh hai vakya sudhdhi kijye
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यह वाक्य बिलकुल सत्य है साहित्य और जीवन का घोर सम्बन्ध है |
साहित्य समाज की एक तस्वीर है । एक साहित्यकार समाज की वास्तविक , समाज की तस्वीर को एक साहित्य के रूप में जीवन में प्रस्तुत करता है | । मानव जीवन समाज का ही एक अंग है । साहित्य के जरिए हम बहुत सारे विषयों के बारे में ज्ञान ले सकते है | साहित्य ने सहित का भाव होता है , साथ का भाव होता है। मनुष्य का मनुष्य से, अतीत का वर्तमान से, शब्द का अर्थ से, भाषा का भाव होता है। समाज के जीवन और उसके हितों का ज्ञान हमें साहित्य के द्वारा मिलता है। साहित्य के अध्ययन से हम पहले के समय में मानव जीवन के रहन-सहन व अन्य गतिविधियों का अध्ययन कर सकते हैं या उसके विषय में विस्तार में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के तरक्की व चारित्रिक विकास में सदैव सहायक होता है ।
साहित्य और जीवन का घोर संबंध है वाक्य शुद्धि कीजिये।
ये वाक्य थोड़ा अशुद्ध है...
इस वाक्य का शुद्ध रूप इस प्रकार होगा..
साहित्य और जीवन में घोर संबंध है।
इस वाक्य में साहित्य और जीवन में संबंध दर्शाया गया है इस कारण ये संबंधकारक वाक्य है।
जब दो समान व्यक्ति, विषय या वस्तु में संबंध दर्शाया जाता है तो दोनों के बीच और, तथा या एवम् लगाने के बाद ‘में’ ही आता है।
इन दोनों शब्दों के बाद ‘का’ लगाने से दोनों शब्दों का जोर ‘घोर‘ शब्द पर हो जाता है, और इनमें आपस में संबंध नही प्रतीत होता है।