sahitya ka kya udeshya hai ,tatha isse kya labh hai??? i need a lengthy answer. please reply immediately!!!!
Answers
Answered by
9
साहित्य’ शब्द में मानव हित साधन का भाव स्वत: ही अन्तर्हित रहा करता है और यह सोद्दश्य होता है। सृष्टि में कोई भी प्राणी, पर्दााि या अन्य कुछ निरुद्देश्य नहीं है। मानव इस सृष्टि का सर्वोत्कृष्ट प्राणी है। इस मानव ने अपने सतत प्रयत्न और साधना से आज तक जो कुछ भी प्राप्त किया है, उस सबमें कला और सहित्य और श्रेष्ठतम उपलब्धि माना गया है। यही कारण है कि साहित्य का मूल उत्स या स्त्रोत जीवन और मानव-समाज को ही स्वीकार किया जाता है। साहित्य का प्रभाव अचूक हुआ करता है। मुख्यतय यह प्रभाव जीवन को सहज-स्वस्थ और आनंदमय बनाने में ही दिखाई दिया करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि साहितत्य का मूल उद्देश्य कुरीतियों, सभी प्रकार की बुराइयों से हटाकर स्वस्थ, सुंदर और आनंदमय जीवन की ओर अग्रसर करना है। जीवन और समाज से संबंधित शेष सभी बातें इसी चेतना के अंतर्गत आ जाती है।व्युत्पत्ति या बनावट की दृष्ट से ‘साहित्य’ शब्द पर विचार करने पर हम पाते हैं कि इसमें ‘सहित’ और ‘हित’ का भाव छिपा है। अर्थात जो रचना मानवता का हित-साधन करती है वह साहित्य है। तभी तो संस्कृत के आचार्यों ‘सहितस्य भार्व साहित्यम’ कहकर इसकी परिभाषा की है। आधुनिक आचार्यों ने भी साहित्य की परिभाषा करते समय इन्हं बातों का ध्यान रखा है। डॉ. श्यामसुंदर दास मानते हैं कि ‘साहित्य वह है, जो हृदय में आलौकिक आनंद या चमत्कार की सृष्टि करे।’ स्वर्गीय प्रेमचंद मानते थे कि ‘साहित्य हमारे जीवन को स्वाभाविक ओर सुंदर बनाता है।’ इसी प्रकार की मान्यतांए अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने भी प्रगट की हैं। सभी मान्यतांए वस्तुत: साहित्य के उद्देश्य की है प्रकाशित करने वाली हैं। यहां गोस्वामी तुलसीदास का कथन भी द्रष्टव्य है। कुछ पाश्चात्य विद्वान साहित्य को समाज का दर्पण और कछ दिमाग मानते हैं। कुछ लोग साहित्य को ‘जीवन की व्याख्या’ भी स्वीकार करते हैं। इन्हीं से मिलता-जुलता मत आचार्य महावीरप्रसाद द्विेवेदी का भी है ‘विचारों के संचित कोश का नाम साहित्य है।’ इस प्रकार स्पष्ट है कि साहित्य में मानव जीवन के सदविचार और भाव संचित रहा करते हैं- ऐसे भाव और विचार कि जिनका उद्देश्य जीवन-समाज में आ गई कुरुपताओं, दुष्प्रभावों और असंगतियों को मिटाकर संगत एंवव कल्याणकारी बनाना है। भारतीय ग्रामीण आचायों ने साहित्य या काव्य का उद्देश्य भावनाओं का परिष्कार करके ब्रहमानंद सहोदर आनंद की अनुभूति कराना स्वीकार किया है। अर्थात उनके अनुसार रस प्राप्त करना या मनोरंजन पाना ही साहित्य का उद्देश्य है। रस या मनोरंजन भी तभी पाया जा सकता है जब कि व्यक्ति और समाज का मन-मस्तिष्क सहज एंव स्वस्थ हो। क्योंकि स्वस्थ मन-मस्तिष्क ही रस प्राप्त कर सकता है। अत: इस उद्देश्य की प्राप्ति के साथ-साथ प्राचीन भारतीय आचार्य साहित्य का उद्देश्य, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति, व्यवहार-ज्ञान कराने के साथ-साथ यश की प्राप्ति भी स्वीकार करते हैं। शुभमंगल की रक्षा भी इसका उद्देश्य है।
shahpalash11:
thanks
Similar questions