Sahitya ko Sanjivani aushadhi ka Aadhar Kyon Kaha gaya hai
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Kyoki unme anant gyan ka bhadar bhara rahta hai
इस गद्यांश के अनुसार "साहित्य को संजीवनी औषधि का आधार इसलिए कहा गया है क्योंकि साहित्य में जो शक्ति छिपी है वह तोप, तलवार और बम के गोलों में भी नहीं पाई जाती | साहित्य मुरदों को भी जींद करने वाला है और पतितों को भी उठाने वाला है |"
कवि कहता है कि, जो जाति और समाज साहित्य के उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा नहीं करता वह अज्ञान के अंधकार में एक दिन अपने अस्तित्व खो बैठता है |
अतः समर्थ होकर जो मनुष्य इतने महत्वशाली साहित्य की सेवा और अभिवृद्धि नहीं करता वह समाजद्रोही है, देशद्रोही है, जातिद्रोही है |
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