Hindi, asked by sanskriti46, 1 year ago

sahitya samaj ka darpan hai

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Answered by harishchoudhary64
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साहित्य’ शब्द की व्युत्पत्ति सहित शब्द से हुई है। ‘साहित’ शब्द के दो अर्थ हैं- ‘स’ अर्थात् साथ साथ और हित अर्थात् कल्याण। इस दृष्टिकोण से साहित्य शब्द से अभिप्राय यह हुआ कि साहित्य वह ऐसी लिखित साम्रगी है, जिसके शब्द और अर्थ में लोकरहित भी भावना सन्निहित रहती है। अर्थ के लिए विस्तारपूर्वक लिखित सामग्री के साहित्य शब्द का प्रयोग प्रचलित है, जैसे- इतिहास-साहित्य, राजनीति साहित्य, विज्ञान साहित्य, पत्र साहित्य आदि। इस प्रकार साहित्य से साहित्यकार की भावनाएँ समस्त जगत के साथ रागात्मक का सम्बन्ध स्थापित करती हुई परस्पर सहयोग, मेलमिलाप और सौन्दर्यमयी चेतना जगाती हुई आनन्द प्रदायक होती है। इससे रोचकता और ललकता उत्पन्न होती है।

साहित्य और समाज का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। समाज की गतिविधियों से साहित्य अवश्य प्रभावित होता है। साहित्यकार समाज का चेतन और जागरूक प्राणी होता है। वह समाज के प्रभाव से अनभिज्ञ और अछूता न रहकर उसका भोक्ता और अभिन्न अंग होता है। इसलिए वह समाज का कुशल चित्रकार होता है। उसके साहित्य में समाज का विम्ब प्रतिबिम्ब रूप दिखाई पड़ता है। समाज का सम्पूर्ण अंग यथार्थ और वास्तविक रूप में प्रस्तुत होकर मर्मस्पर्शी हो उठता है। यही नहीं समाज का अनागत रूप भी काल्पनिक रूप में ही हमें संकेत करता हुआ आगाह करता है। इस दृष्टिकोण से साहित्य और समाज का परस्पर सम्बन्ध एक दूसरे पर निर्भर करता हुआ स्पष्ट होता है।

‘साहित्य समाज का दर्पण’ ऐसा कहने का अर्थ यही है कि साहित्य समाज का न केवल कुशल चित्र है, अपितु समाज के प्रति उसका दायित्व भी है। वह सामाजिक दायित्वों का बहन करता हुआ उनको अपेक्षित रूप में निबाहने में अपनी अधिक से अधिक और आवश्यक से आवश्यक भूमिका अदा करता है। समाज में फैली हुई अनैतिकता, अराजकता, निरंकुशता जैसे अवांछनीय और असामाजिक तत्वों के दुष्प्रभाव को बड़े ही मर्मस्पर्शी रूप में सामने लाता है। इससे ऐसे तत्वों के प्रति घृणा, कटुता, दूरी और अलगाव की दृष्टि डालते हुए इन्हें हतोत्साहित किया जा सके।

साहित्यकार ऐसा कदम उठाते हुए ही जीवन के शाश्वत मूल्यों और आश्वयकताओं को अपेक्षित रूप में समाज को प्रदान करने लगता है। हिन्दी साहित्य का आदिकाल से रचित प्रायः सभी रचनाओं द्वारा तत्कालीन समाज जाति की परिस्थिति, विचार और कार्य व्यापार की पूरी जानकारी प्राप्त होती है। पराभव के द्वार पर पहुँचा हुआ हिन्दू समाज किस तरह मुस्लिम आक्रमणों से शिकस्त होकर अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करने में अपने आपको असमर्थ पा रहा था, जिससे हमें गुलामी की बेड़ी में बँध जाना पड़ा था। इसी तरह से रीतिकालीन विलासी जीवन से हम अपनी विकृतावस्था से किस तरह अज्ञानान्धकार में भटक रहे थे। आदिकाल का चित्र हमारी आँखों के सामने उस काल के साहित्यावलोकन से आने लगता है।

समाज और साहित्यक विषय साहित्य और समाज के ही समान तो लगता है, लेकिन दोनों में परस्पर भिन्नता है। साहित्य और समाज और समाज और साहित्य को ध्यान से देखने पर एक गम्भीर तथ्य यह निकलता है कि साहित्य जहाँ समाज का दर्पण हैं, वहीं यह भी है कि समाज साहित्य का दर्पण है। साहित्य के द्वारा समाज का निर्माण होता है, अर्थात् साहित्य में जो कुछ है वही समाज में भी है और शेष को होना है। हिन्दी साहित्य का भक्तिकाल इसकी पुष्टि करता है। तत्कालीन समाज की हीन और पराभव की परिस्थिति को सबल और आशामय संचार का ज्वार उठाती हुई भक्ति काव्यमयी रचनाओं ने अपना एक अभूतपूर्व इतिहास स्थापित किया। इसीलिए यह कहना अक्षरश:  सत्य है कि यदि साहित्य वास्तव में केवल समाज का दर्पण होता, तो कवि या साहित्यकार समाज की विसंगतियों या विडम्बनाओं पर कटु प्रहान नहीं करता। फिर उसे यथेष्ट और अपेक्षित दिशाबोध देने के लिए प्रयन्तशील भी नहीं होता। इसलिए जब कोई कवि या साहित्यकार समाज की अवांछनीयता या त्रुटियों को देखता है, उसे अनावश्यक समझता है और उसका शिरोच्छेदन कर आमूलचूल परिवर्तन के लिए दिशा निर्देश को एकमात्र विकल्प मानता है, तब वह इसके लिए सत्साहित्य का सृजन करना अपना सर्वप्रथम कर्त्तव्य समझता है और ऐसा करके वह विधाता का पद प्राप्त करता है, क्योंकि जहाँ विधाता समाज और सृष्टि का नियंता होता है, वहीं कवि और साहित्यकार भी अपेक्षित और आवश्यक समाज की रचना का सुझाव अपनी रचनाओं के दिया करता है।

समाज के प्रति साहित्यकार का दायित्व आशा का संचार करना, उत्साह और कर्त्तव्यबोध का दिशा देना आदि है। आदि कवि से लेकर आज के जागरूक और चेतनाशील साहित्यकारों की यही गौरवशाली परम्परा रही है। समाज की रूपरेखा को कल्याण और सुखद पथ पर प्रस्तुत करने से सत् साहित्य का रचनाकार कभी पीठ नहीं दिखाता है। वह सामाजिक विषमता रूपी समर में विजयी होने के लिए कलमरूपी तलवार को धारदार बनाए रखने में कभी गाफिल नहीं होता है।

Answered by radhasudhir1998
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