sahriday namaskar bandhuon ❤️❤️
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hum sabhi jaante hain ki hamare jivan me gurujano ki kitna mahatta hai.✍️✍️
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isi sandarbh me aap hame ek lekh pradan kare kare jiska shirshak hai✌️✌️
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"" GURUJANON KA MAHATTAV EK VIDYARTHI KE JIVAN ME""
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aaj jo hum hai jo v padh rahe hai ya likh rahe hai sabhi unhi ka diya hua hai.☺️☺️
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isliye kabhi bhi apne gurujano ke vishay me galat na soche na bole☺️☺️
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dhanyawad...aapki zindagi sukhdayi ho✌️✌️
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जिस प्रकार किसी देश की सरकार के अंर्तगत संपूर्ण देश का प्रशासनिक कार्य सुचारू रूप से चलने हेतु विविध विभाग होते हैं, ठीक उसी प्रकार सर्वोच्च ईश्वरीय तत्त्व के विविध अंग होते हैं । ईश्वर के ये विविध अंग ब्रह्मांड में विशिष्ट कार्य करते हैं ।
जिस प्रकार किसी सरकार के अंर्तगत शिक्षा विभाग होता है, जो पूरे देश में आधुनिक विज्ञान सिखाने में सहायता करता है, उसी प्रकार ईश्वर का वह अंग जो विश्व को आध्यात्मिक विकास तथा आध्यात्मिक शिक्षा की ओर ले जाता है, उसे गुरु कहते हैं । इसे अदृश्य अथवा अप्रकट (निर्गुण) गुरु (तत्त्व) अथवा ईश्वर का शिक्षा प्रदान करने वाला तत्त्व कहते हैं । यह अप्रकट गुरु तत्त्व पूरे विश्व में विद्यमान है तथा जीवन में और मृत्यु के पश्चात भी हमारे साथ होता है । इस अप्रकट गुरु का महत्व यह है कि वह संपूर्ण जीवन हमारे साथ रहकर धीरे-धीरे हमें सांसारिक जीवन से साधना पथ की ओर मोडता है । गुरु हमें अपने आध्यात्मिक स्तर के अनुसार अर्थात ज्ञान ग्रहण करने की हमारी क्षमता के अनुसार (चाहे वह हमें ज्ञात हो या ना हो) मार्गदर्शन करते हैं और हममें लगन, समर्पण भाव, जिज्ञासा, दृढता, अनुकंपा (दया) जैसे गुण (कौशल) विकसित करने में जीवन भर सहायता करते हैं । ये सभी गुण विशेष (कौशल) अच्छा साधक बनने के लिए और हमारी आध्यात्मिक यात्रा में टिके रहनेकी दृष्टि से मूलभूत और महत्त्वपूर्ण हैं । जिनमें आध्यात्मिक उन्नति की तीव्र लगन है, उनके लिए गुरुतत्त्व अधिक कार्यरत होता है और उन्हें अप्रकट रूप में उनकी आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन करता है ।यह गुरु का महत्त्व है।
विश्व में बहुत ही कम लोग सार्वभौमिक (आध्यात्मिक) साधना करते हैं जो औपचारिक और नियमबद्ध धर्म / पंथ के परे है । इनमें भी बहुत कम लोग साधना कर (जन्मानुसार प्राप्त धर्म के परे जाकर) ७०% से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करते हैं । अप्रकट गुरुतत्त्व, उन्नत जीवों के माध्यम से कार्य करता है, जिन्हें प्रकट (सगुण) गुरु अथवा देहधारी गुरु कहा जाता है । अन्य शब्दों में कहा जाए, तो आध्यात्मिक मार्गदर्शक अथवा गुरु बननेके लिए व्यक्ति का न्यूनतम आध्यात्मिक स्तर ७०% होना आवश्यक है । देहधारी गुरु मनुष्य जाति के लिए आध्यात्मिक ज्ञान के दीप स्तंभ की भांति कार्य करते हैं और वे ईश्वर के विश्व मन और विश्व बुद्धि से पूर्णतः एकरूप होते हैं ।
Hope this helps you dude nice Question dude all the best ✌️✌️☺️☺️✅✅✅✅
जिस प्रकार किसी सरकार के अंर्तगत शिक्षा विभाग होता है, जो पूरे देश में आधुनिक विज्ञान सिखाने में सहायता करता है, उसी प्रकार ईश्वर का वह अंग जो विश्व को आध्यात्मिक विकास तथा आध्यात्मिक शिक्षा की ओर ले जाता है, उसे गुरु कहते हैं । इसे अदृश्य अथवा अप्रकट (निर्गुण) गुरु (तत्त्व) अथवा ईश्वर का शिक्षा प्रदान करने वाला तत्त्व कहते हैं । यह अप्रकट गुरु तत्त्व पूरे विश्व में विद्यमान है तथा जीवन में और मृत्यु के पश्चात भी हमारे साथ होता है । इस अप्रकट गुरु का महत्व यह है कि वह संपूर्ण जीवन हमारे साथ रहकर धीरे-धीरे हमें सांसारिक जीवन से साधना पथ की ओर मोडता है । गुरु हमें अपने आध्यात्मिक स्तर के अनुसार अर्थात ज्ञान ग्रहण करने की हमारी क्षमता के अनुसार (चाहे वह हमें ज्ञात हो या ना हो) मार्गदर्शन करते हैं और हममें लगन, समर्पण भाव, जिज्ञासा, दृढता, अनुकंपा (दया) जैसे गुण (कौशल) विकसित करने में जीवन भर सहायता करते हैं । ये सभी गुण विशेष (कौशल) अच्छा साधक बनने के लिए और हमारी आध्यात्मिक यात्रा में टिके रहनेकी दृष्टि से मूलभूत और महत्त्वपूर्ण हैं । जिनमें आध्यात्मिक उन्नति की तीव्र लगन है, उनके लिए गुरुतत्त्व अधिक कार्यरत होता है और उन्हें अप्रकट रूप में उनकी आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन करता है ।यह गुरु का महत्त्व है।
विश्व में बहुत ही कम लोग सार्वभौमिक (आध्यात्मिक) साधना करते हैं जो औपचारिक और नियमबद्ध धर्म / पंथ के परे है । इनमें भी बहुत कम लोग साधना कर (जन्मानुसार प्राप्त धर्म के परे जाकर) ७०% से अधिक आध्यात्मिक स्तर प्राप्त करते हैं । अप्रकट गुरुतत्त्व, उन्नत जीवों के माध्यम से कार्य करता है, जिन्हें प्रकट (सगुण) गुरु अथवा देहधारी गुरु कहा जाता है । अन्य शब्दों में कहा जाए, तो आध्यात्मिक मार्गदर्शक अथवा गुरु बननेके लिए व्यक्ति का न्यूनतम आध्यात्मिक स्तर ७०% होना आवश्यक है । देहधारी गुरु मनुष्य जाति के लिए आध्यात्मिक ज्ञान के दीप स्तंभ की भांति कार्य करते हैं और वे ईश्वर के विश्व मन और विश्व बुद्धि से पूर्णतः एकरूप होते हैं ।
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dayanand44:
aapka bahut bahut dhanyawad bhaiya
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