सज्जन पुरुष धन को किस लिए इकट्ठा करता है
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दूसरों की सहायता के लिए
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वसंत भाग 2
रहीम के दोहे
कवि-अब्दुर्ररहीम खानखाना
भावार्थ
1 प्रथम दोहे में कवि रहीम ने विपत्ति को कसोटी माना है जो सच्चे मित्र की पहचान कराती है रहीम जी कहते हैं कि जब तक के मनुष्य के पास धन दौलत और प्रतिष्ठा रहती है ,तब तक लोग उसके स
3 तीसरे दोहे में परोपकार की बात है रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाकर औरों के लिए देता है ।जिस प्रकार तालाब अपना पानी स्वयं ने पीकर औरों के लिए दे देता है ।ठीक उसी प्रकार सज्जन लोग दूसरे लोगों की भलाई के लिए ही धन जोड़ते हैं।
4 चौथे दोहे में बताया है कि जिस प्रकार वर्षा ऋतु के बाद क्वार अर्थात आशिवन माह में भी बादल आकाश में उमड़ घुमड़ कर आते हैं लेकिन वे खाली होते हैं अर्थात उनमें जल नहीं होता ठीक उसी प्रकार कई लोग धनी से निर्धन हो जाते हैं लेकिन फिर भी वह पिछले समय की अमीरों की बातें ही करते रहते हैं जो निरर्थक होती है ।
5 पंचम दोहे में रहिमन कहते हैं कि जिस प्रकार यह धरती सर्दी, गर्मी और वर्षा सभी ऋतुओं को बराबर रूप से सहन करती है ।वैसे ही मानव शरीर को भी जीवन में आने वाले सुख-दुख को समान रूप से अपनाकर सहन करना चाहिए।