सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो श्री सुनी झंकार।
एक क्षण के बाद वह कॉपी सुघर,
दुलक माथे से गिरे सीकर
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा
"मैं तोड़ती पत्थर।
pls explain the meaning of this paragraph in a precise manner.
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पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा किए जा रहे शोषण को देखकर निराला बहुत बेचैन होते थे। उनकी अनेक रचनाओं में यह बेचैनी और पीड़ा झलकती है। 'वह तोड़ती पत्थर' कविता में भी श्रमिक नारी के जीवन और उसके प्रति समाज की हृदयहीनता का अंकन किया गया है। निराला का अपना जीवन भी कष्ट भोगते हुए बीता।
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