Hindi, asked by virenderfycgmailcom, 1 day ago

सकारात्मक सोच पर आधारित एक स्वरचित कविता लिखिए।​

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Answered by NareshBabu85
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सकारात्मक सोच पर आधारित एक स्वरचित कविता लिखिए।

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Answered by mvbhilai102
1

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'सोच-सोच के "सोच" को सोचो,

सोच एक बड़ी "सोच" है |'

सोच-सोच के,"सोच" को जो सोच सका न,

सोचो वो कैसी "सोच" है?

सोचने का सबको अधिकार है |

पर,सोच के भी कई प्रकार हैं||

कहीं मतलबी "सोच" है,

तो कहीं ईर्ष्यालु "सोच" है |

कहीं प्यार भरी "सोच" है ,

तो कहीं झगड़ालू "सोच" है ||

कहीं रंगभेदी "सोच" है,

तो कहीं नस्लभेदी "सोच है |

कहीं संकी "सोच"है,

तो कहीं आतंकी "सोच" है |

कहीं तेरी "सोच" है,

तो कहीं मेरी "सोच" है |

कहीं इसकी "सोच" है,

तो कहीं उसकी "सोच" है ||

कहीं अच्छी "सोच" है,

तो कहीं बुरी "सोच" है |

कहीं झूठी "सोच" है,

तो कहीं ख़री "सोच" है ||

"सोच" में अपनी इंसानियत लाओ|

ज़िन्दगी में अपनी एहमियत बनाओ||

ज़िन्दगी की बुनियाद है, इंसानियत |

रब से की गई फरियाद है, इंसानियत ||

इंसान की इंसानियत कभी,

किसी को ठेस नहीं पहुँचाती |

बढ़ाती है भाई-चारा,

कभी गलत संदेश नहीं पहुँचाती ||

कहीं धर्म की "सोच",

तो कहीं जात-पात की "सोच"|

कहीं अमीरी-गरीबी की सोच",

तो कहीं तेरी 'औकात' की "सोच"||

"सोच" बदलो "विचार" बदलो,

हौंसलों से संसार बदलो |

क्यों?छोटी होती जा रही है "सोच",

"सोच" का आकार बदलो||

"सोच" के कई रंग हैं |

पर, सोचने के कई ढंग हैं ||

कोई बे-ईमानी की "सोच" रखता है,

तो कोई ईमानदारी की |

कोई गद्दारी की "सोच" रखता है,

तो कोई वफ़ादरी की |

कोई इंसानियत की "सोच" रखता है,

तो कोई हैवानियत की |

कोई मासूमियत की "सोच" रखता है,

तो कोई एहमियत की ||

कोई अंहकार की "सोच" रखता है,

तो कोई भ्रष्टाचार की |

कोई फरेब की "सोच" रखता है,

तो कोई एतबार की ||

कोई सकारात्मक "सोच" रखता है,

तो कोई नकारात्मक |

कोई आध्यात्मिक "सोच" रखता है,

तो कोई विचारात्मक ||

हिंसात्मक "सोच" सबसे ज्यादा दुखदायी है |

जिसने भी रखी ऐसी "सोच" उसने 'मुँह की खाई' है||

"सोच" ही इंसान को 'छोटा' बनाती है,

"सोच" ही इंसान को 'बड़ा' बनाती है |

"सोच" ही इंसान को 'खुदगर्ज' बनाती है,

"सोच" ही इंसान को 'चिकना घड़ा' बनाती है ||

कम 'सोचना' भी ठीक नहीं|

ज्यादा 'सोचना' भी ठीक नहीं ||

'सोचो' सिर्फ उतना, जितना हो सही|||

"सोच" बड़े काम की चीज है,

जब सकारात्मक हो |

"सोच" बड़े पैगाम की चीज है,

जब विचारात्मक हो ||

एक मत, एक जन, एक सोच, एक मन|

सुखमय कर देगा सबका जीवन|

जब बदलेगी "सोच",

तो बदलेगा समाज|

तब बदलेगी 'दुनिया',

ये रीति-रिवाज ||

"सोच" ऐसी हो, जिनमें इंसानियत छिपी हो |

हरेक इंसान की एहमियत छिपी हो ||

"सोच" ऐसी हो, जिसमें प्यार छिपा हो |

मासूमियत और एतबार छिपा हो ||

"सोच" ऐसी हो, जिसमें विश्वास हो |

इंसानों की कद्र और दर्द का एहसास हो ||

जब "सोच" की दिशा इंसानियत की राह में जायेगी |

तब हरेक ज़िन्दगी 'जीवन' जीने की चाह पायेगी ||

आँखें 'नम' वाली "सोच",

हिंसा 'ख़त्म' वाली "सोच"|

देश को सशक्त बनायेगी,

'मैं' नहीं 'हम' वाली "सोच"||

जब सबकी "सोच" हो जायेगी एक समान |

तब 'गुल-ए-गुलस्तां' हो जायेगा हिन्दुस्तान ||

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