सकारात्मक सोच पर आधारित एक स्वरचित कविता लिखिए।
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सकारात्मक सोच पर आधारित एक स्वरचित कविता लिखिए।
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'सोच-सोच के "सोच" को सोचो,
सोच एक बड़ी "सोच" है |'
सोच-सोच के,"सोच" को जो सोच सका न,
सोचो वो कैसी "सोच" है?
सोचने का सबको अधिकार है |
पर,सोच के भी कई प्रकार हैं||
कहीं मतलबी "सोच" है,
तो कहीं ईर्ष्यालु "सोच" है |
कहीं प्यार भरी "सोच" है ,
तो कहीं झगड़ालू "सोच" है ||
कहीं रंगभेदी "सोच" है,
तो कहीं नस्लभेदी "सोच है |
कहीं संकी "सोच"है,
तो कहीं आतंकी "सोच" है |
कहीं तेरी "सोच" है,
तो कहीं मेरी "सोच" है |
कहीं इसकी "सोच" है,
तो कहीं उसकी "सोच" है ||
कहीं अच्छी "सोच" है,
तो कहीं बुरी "सोच" है |
कहीं झूठी "सोच" है,
तो कहीं ख़री "सोच" है ||
"सोच" में अपनी इंसानियत लाओ|
ज़िन्दगी में अपनी एहमियत बनाओ||
ज़िन्दगी की बुनियाद है, इंसानियत |
रब से की गई फरियाद है, इंसानियत ||
इंसान की इंसानियत कभी,
किसी को ठेस नहीं पहुँचाती |
बढ़ाती है भाई-चारा,
कभी गलत संदेश नहीं पहुँचाती ||
कहीं धर्म की "सोच",
तो कहीं जात-पात की "सोच"|
कहीं अमीरी-गरीबी की सोच",
तो कहीं तेरी 'औकात' की "सोच"||
"सोच" बदलो "विचार" बदलो,
हौंसलों से संसार बदलो |
क्यों?छोटी होती जा रही है "सोच",
"सोच" का आकार बदलो||
"सोच" के कई रंग हैं |
पर, सोचने के कई ढंग हैं ||
कोई बे-ईमानी की "सोच" रखता है,
तो कोई ईमानदारी की |
कोई गद्दारी की "सोच" रखता है,
तो कोई वफ़ादरी की |
कोई इंसानियत की "सोच" रखता है,
तो कोई हैवानियत की |
कोई मासूमियत की "सोच" रखता है,
तो कोई एहमियत की ||
कोई अंहकार की "सोच" रखता है,
तो कोई भ्रष्टाचार की |
कोई फरेब की "सोच" रखता है,
तो कोई एतबार की ||
कोई सकारात्मक "सोच" रखता है,
तो कोई नकारात्मक |
कोई आध्यात्मिक "सोच" रखता है,
तो कोई विचारात्मक ||
हिंसात्मक "सोच" सबसे ज्यादा दुखदायी है |
जिसने भी रखी ऐसी "सोच" उसने 'मुँह की खाई' है||
"सोच" ही इंसान को 'छोटा' बनाती है,
"सोच" ही इंसान को 'बड़ा' बनाती है |
"सोच" ही इंसान को 'खुदगर्ज' बनाती है,
"सोच" ही इंसान को 'चिकना घड़ा' बनाती है ||
कम 'सोचना' भी ठीक नहीं|
ज्यादा 'सोचना' भी ठीक नहीं ||
'सोचो' सिर्फ उतना, जितना हो सही|||
"सोच" बड़े काम की चीज है,
जब सकारात्मक हो |
"सोच" बड़े पैगाम की चीज है,
जब विचारात्मक हो ||
एक मत, एक जन, एक सोच, एक मन|
सुखमय कर देगा सबका जीवन|
जब बदलेगी "सोच",
तो बदलेगा समाज|
तब बदलेगी 'दुनिया',
ये रीति-रिवाज ||
"सोच" ऐसी हो, जिनमें इंसानियत छिपी हो |
हरेक इंसान की एहमियत छिपी हो ||
"सोच" ऐसी हो, जिसमें प्यार छिपा हो |
मासूमियत और एतबार छिपा हो ||
"सोच" ऐसी हो, जिसमें विश्वास हो |
इंसानों की कद्र और दर्द का एहसास हो ||
जब "सोच" की दिशा इंसानियत की राह में जायेगी |
तब हरेक ज़िन्दगी 'जीवन' जीने की चाह पायेगी ||
आँखें 'नम' वाली "सोच",
हिंसा 'ख़त्म' वाली "सोच"|
देश को सशक्त बनायेगी,
'मैं' नहीं 'हम' वाली "सोच"||
जब सबकी "सोच" हो जायेगी एक समान |
तब 'गुल-ए-गुलस्तां' हो जायेगा हिन्दुस्तान ||