सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहिर लसति मानो पिए दावानल की ज्वाल।।
कौन सा अलंकार है ?
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सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल।
बाहिर लसति मानो पिए दावानल की ज्वाल।।
इन पंक्तियों में ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा के अनुसार जहां उपमेय में ही उपमान होने की कल्पना कर ली जाये या मान लिया जाये तो वहां ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ होता है।
उपरोक्त पंक्तियों में गुंजन की माल (उपमेय) को दावानल की ज्वाल (उपमान) मान लिया गया है, अतः इन पंक्तियों में ‘उत्प्रेक्षा अलंकार’ की उपस्थिति है। उपमेय का तात्पर्य है उपमा देने योग्य अर्थात जिसकी समानता किसी अन्य से किसी जाये और उपमान का तात्पर्य है कि जिससे उपमेय की समानता की जाये।
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