सखि सोहत गोपाल कै, उर गुंजनु की माल ।
बाहिर लसत मनौ पिये, दावानल की ज्वाल ॥ 2 ॥अर्थ बताइए
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वस्तुतप्रेक्षा अलंकार (उत्प्रेक्षा अलंका
जहां प्रस्तुत में अप्रस्तुत की सम्भावना व्यक्त की जाए उसे वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं
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