Hindi, asked by Sayel, 1 year ago

sakhi poem summary from sahitya sagar book

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Answered by mchatterjee
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गुरु को किजे बंदगी, कोटि-कोटि प्रणाम
कितने न जाने भ्रिंग को, गुरु करले आप समान

अर्थ--लाखों बार गुरु को नमस्कार और अनुष्ठान का प्रस्ताव।

जैसे कि एक ततैया अपने घोंसले में एक कीड़ा लेता है और एक अन्य भांति उभरता है, बस इतना गुरू साधारण शिष्य को स्वयं बनाते हैं।
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