saksharta ka mahatva
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साक्षर– भारत में किसी भी व्यक्ति को साक्षर तब कहा जाता है जब वह अपना नाम लिख और पढ़ सके। उसे पैसों का हिसाब किताब करना अथवा समझना आता है।
साक्षरता दर- साक्षरता दर किसी भी क्षेत्र की पढी लिखी जनसंख्या का वहाँ के लोगों की संख्या से अनुपात है जिसे ज्यादातर प्रतिशत में देखा जाता है।
प्राचीन काल में साक्षरता- प्राचीन काल में लोग बहुत ही सरल होते हैं और उनकी जरूरते भी न्यूनतम होती है। उस समय बहुत ही कम लोग साक्षर होते थे। जिस समय भारत आजाद हुआ था उस समय भारत की साक्षरता दर केवल 12 प्रतिशत थी।
साक्षरता की आवश्यकता- धीरे धीरे जब मनुष्य ने प्रगति करनी शुरू की तो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे पढ़ने और लिखने की आवश्यकता महसुस हुई। साक्षर व्यक्ति ही देश के हित के लिए कार्य कर सकता है अन्यथा निरक्षर व्यक्ति को इस युग में अपनी जरूरतों को भी पूरा करने में असक्षम है। साक्षरता ही है जो मनुष्य को सफल होने में सहायता करती है। साक्षर व्यक्ति को कोई भी ठग नहीं सकता है और उसका शोषण नहीं किया जा सकता है।
साक्षरता के लिए उठाए गए कदम- भारतीय सरकार ने साक्षरता दर को बढ़ाने और लोगों को साक्षर बनाने के लिए बहुत से प्रयास किए है। इसके लिए राष्ट्रीय साक्षरता मिशन आदि चलाए गए थे। शिक्षा के अधिकार के लागु होने के बाद से साक्षरता दर में वृद्धि हुई है और लोगों को शिक्षा की तरफ बढ़ावा दिया है।
आधुनिक युग में साक्षरता दर- आज के समय में भारत ने बहुत से राज्यों में पूर्ण रूप से साक्षरता दर को प्राप्त कर लिया है। केरल राज्य का साक्षरता दर सबसे ज्यादा है।
निष्कर्ष- साक्षरता की परिभाषा हर देश में अलग है। साक्षरता से ही हर व्यक्ति के जीवन का उदार होता है। हम सबको साक्षरता के हित में कदम उठाने चाहिए और देश को पूर्ण रूप से साक्षर बनाना चाहिए। साक्षरता से ही व्यक्ति अपने अधिकारों साक्षर व्यक्ति को अंधविश्वासों से भी मुक्ति मिलती है। शोषण होने से रोक सकता है और प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है।
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साक्षरता का महत्व
जिस प्रकार की रोटी, कपड़ा और मकान मानव की मूलभूत संस्थाओं हैं, उसी प्रकार साक्षरता भी आज मानव की मूलभूत आवश्यकता बन गई है। विकास के इस वर्तमान दौर में तो निरक्षरता मानव के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। रोटी, कपड़ा और मकान व्यक्ति की संस्थाओं हैं और साक्षरता व्यक्तित्व का विकास करती है।
भारत के कई क्षेत्रों में अब भी ऐसे विमानन लोग हैं, जिनके लिए पत्र - ज्ञान भैंस के आगे बीन बजाने के समान है। वे पत्र आदि पढ़ने तक के लिए साक्षरों को खोजते फिरते हैं। नीति ग्रंथों में कहा गया है, निस्ति विद्या समं चक्षु, अर्थात विद्या के समान चक्षु नहीं।] पुस्तकों में समाहित हमारा सारा ज्ञान - भंडार इन लोगों के लिए शून्य है।
जिस राष्ट्र के जितने अधिक लोग निरस्त होंगे; वह राष्ट्र राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से समान ही पिछड़ा हुआ होगा। निरक्षर व्यक्ति न तो अपने मत का उचित प्रयोग कर सकता है और न ही मतदान के महत्व को समझ सकता है। सामाजिक कुरीतियों; जैसे - बाल - विवाह, दहेज - प्रथा, छुआछूत को भी यही लोग अधिक बढ़ावा देते हैं। निरक्षरता के कारण किसान नई - नई वैज्ञानिक समितियों से वंचित रह जाता है। ठीक ही कहा गया है - निरक्षरता एक प्रकार का अंधापन है।
निरक्षरता को जड़ से समाप्त करने के लिए सरकारी स्तर पर काफी प्रयास किए जा रहे हैं। गाँव में लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक बनाने के लिए अनौपचारिक शिक्षा और प्रौढ़ - शिक्षा पर काफ़ी बल दिया जा रहा है। साक्षरता के विकास में सबसे बड़ी बाधा ग्रामीणों की प्रवृत्ति है। ग्रामीण अभिभावक अपने बच्चों को उचित शिक्षा न दिलाकर उन्हें अपनी आय का माध्यम मानते हैं। ग्रामीण बच्चों को शिक्षा के प्रति आकर्षित करने के लिए सरकार द्वारा देश में मध्य डे - मील योजना चलाई जा रही है, जिसके तहत बच्चों को दोपहर का भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत आठ से चौदह वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य घोषित किया गया है और सरकार ने 86 वें संविधान संशोधन द्वारा शिक्षा पाने के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया है। प्रौढों को साक्षर बनाने के लिए रात्रि - पाठशाला की भी व्यवस्था की गई है ताकि वे अपने काम से निवृत्त होकर अक्षर - ज्ञान प्राप्त कर सकें। इसलिए यह कहा गया है - रोटी, कपड़ा और मकान, साथ - साथ हो अक्षर ज्ञान।
सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण सरकारी स्तर पर चला गया साक्षरता अभियान पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पा रहा है। निरक्षरता उन्मूलन के नाम पर सरकारी रसीद खाली हो रही है। आज भी भारत के लगभग 19% प्राथमिक विद्यालयों में सिर्फ एक शिक्षक है। यही कारण है कि आजादी के इतने वर्षों के बाद भी हमारे देश में साक्षरता का प्रतिशत केवल 64 प्रतिशत है। देश को निरक्षरता रूपी राक्षसनी के चंगुल से मुक्त कराने के लिए सभी साक्षरों को भी प्रभावशाली भूमिका निभानी होगी; केवल देश से निरक्षरों का खज़ाना खाली हो पाएगा।
किसी भी राष्ट्र के संपूर्ण विकास के लिए देश का साक्षर होना अनिवार्य है। अतः संपूर्ण साक्षरता की मशाल जलाकर ही ज्योतिर्मय भारत का निर्माण किया जा सकता है।