Saksharta par kavita in hindi
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हमारे मुल्क़ की सड़कोँ पे ये मन्ज़र निकलते हैँ
सियासी शक्ल मेँ अब मौत के लश्कर निकलते हैँ
मेरे दुश्मन तो हँसकर फेँकते हैँ फूल अब मुझ पर
मगर कुछ दोस्तोँ की ज़ेब से पत्थर निकलते हैँ
चली हैँ कौन सी जाने हवायेँ अब के गुलशन मेँ
यहाँ शाख़ोँ पे अब कलियाँ नहीँ ख़न्जर निकलते हैँ
हमेँ मालूम है अब उस दरीचे मेँ नहीँ है तू
मगर फिर भी तेरे कूचे से हम अक्सर निकलते हैँ
मसीहा ठीक कर सकता है तू ऊपर के ज़ख़्मोँ को
कई फोड़े भी हैँ जो रुह के अन्दर निकलते हैँ
हमारे सामने कल तक जिन्हेँ चलना न आता था
हमारे सामने ही आज उनके पर निकलते हैँ
खबर पहुँची है मेरी मुफ़लिसी की जब से कानोँ मेँ
मेरे हमदर्द सब मुझसे बहुत बचकर निकलते हैँ
हमेँ अच्छा-बुरा यारोँ यही दुनियाँ बनाती है
दरिन्दे कोख से माँ की कहीँ बनकर निकलते हैँ
ज़ुबाँ मेँ शहद है जिनकी बदन हैँ फूल के जैसे
परख कर देखिये तो दिल से सब पत्थर निकलते हैँ
सियासी शक्ल मेँ अब मौत के लश्कर निकलते हैँ
मेरे दुश्मन तो हँसकर फेँकते हैँ फूल अब मुझ पर
मगर कुछ दोस्तोँ की ज़ेब से पत्थर निकलते हैँ
चली हैँ कौन सी जाने हवायेँ अब के गुलशन मेँ
यहाँ शाख़ोँ पे अब कलियाँ नहीँ ख़न्जर निकलते हैँ
हमेँ मालूम है अब उस दरीचे मेँ नहीँ है तू
मगर फिर भी तेरे कूचे से हम अक्सर निकलते हैँ
मसीहा ठीक कर सकता है तू ऊपर के ज़ख़्मोँ को
कई फोड़े भी हैँ जो रुह के अन्दर निकलते हैँ
हमारे सामने कल तक जिन्हेँ चलना न आता था
हमारे सामने ही आज उनके पर निकलते हैँ
खबर पहुँची है मेरी मुफ़लिसी की जब से कानोँ मेँ
मेरे हमदर्द सब मुझसे बहुत बचकर निकलते हैँ
हमेँ अच्छा-बुरा यारोँ यही दुनियाँ बनाती है
दरिन्दे कोख से माँ की कहीँ बनकर निकलते हैँ
ज़ुबाँ मेँ शहद है जिनकी बदन हैँ फूल के जैसे
परख कर देखिये तो दिल से सब पत्थर निकलते हैँ
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यहां मिलती आजादी सुबह श्याम है,
भारत इसका नाम है।
जहां सीखने के लिए स्वतंत्र है,
यह विकासशील गणतंत्र है।
जहां अपनी भावना लिख सकते हैं,
शिक्षा का सब ध्यान रखते हैं।
जहां हर लिंग को शिक्षा का अधिकार है,
किसी धर्म को न अपने पर अहंकार है।
क्योंकि बापू ने किया था काम महान,
भारत को दी थी शिक्षा की शान।
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