सल) आप भविष्य में क्या बनना चाहते हैं? आपका आदर्श
ब्यक्ति कौन है ? यदि आप वह बन जाते हो तो आप अपने
उत्तरदायित्व का निर्वाह कैसे करेंगे?
Answers
Answer:
Mein bhavishya mein doctor banna chahati hoo
Explanation:
Mein bhavishya mein doctor banna chahati hoo
Answer:
देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें। राष्ट्र के प्रति यह जिम्मेदारी का भाव ही किसी देश को महान बनाता है। यह भाव हमारे अंदर विद्यार्थी काल से ही होना चाहिए। समाज व राष्ट्र के प्रति सजगता का भाव, जिससे राष्ट्र परम वैभव को प्राप्त हो सके। विद्यार्थी के अंदर का यह भाव उसे भविष्य का जिम्मेदार नागरिक भी बनाता है।
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का स्वर्णिम काल होता है। जीवन के इस पड़ाव पर वह जो भी सीखता, समझता है अथवा जिन नैतिक गुणों को अपनाता है वही उसके व्यक्तित्व व चरित्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी जीवन मानव जीवन की आधारशिला है। इस काल में सामान्यत: विद्यार्थी सांसारिक दायित्वों से मुक्त होता है फिर भी उसे अनेक दायित्वों व कर्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है ।
प्रत्येक विद्यार्थी का अपने माता-पिता के प्रति यह पुनीत कर्तव्य बनता है कि वह सदैव उनका सम्मान करे। सभी माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका पुत्र बड़ा होकर उनका नाम रोशन करे । बड़े होकर उत्तम स्वास्थ्य, धन व यश आदि की प्राप्ति करे ।
इसके लिए वह हमेशा अनेक प्रकार के त्याग करते हैं। इन परिस्थितियों में विद्यार्थी का यह दायित्व बनता है कि वह पूरी लगन और परिश्रम के साथ अध्ययन करें तथा अच्छे अंक प्राप्त करें। साथ ही अच्छा चरित्र धारण करने का प्रयत्न करे।

कोरोना
विद्यार्थियों में दायित्व-बोध बनाता है जिम्मेदार नागरिक

Subscribe to Notifications
देश हमें देता है सबकुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें। राष्ट्र के प्रति यह जिम्मेदारी का भाव ही किसी देश को महान बनाता है। यह भाव हमारे अंदर विद्यार्थी काल से ही होना चाहिए। समाज व राष्ट्र के प्रति सजगता का भाव, जिससे राष्ट्र परम वैभव को प्राप्त हो सके। विद्यार्थी के अंदर का यह भाव उसे भविष्य का जिम्मेदार नागरिक भी बनाता है।
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का स्वर्णिम काल होता है। जीवन के इस पड़ाव पर वह जो भी सीखता, समझता है अथवा जिन नैतिक गुणों को अपनाता है वही उसके व्यक्तित्व व चरित्र निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी जीवन मानव जीवन की आधारशिला है। इस काल में सामान्यत: विद्यार्थी सांसारिक दायित्वों से मुक्त होता है फिर भी उसे अनेक दायित्वों व कर्तव्यों का निर्वाह करना पड़ता है ।
प्रत्येक विद्यार्थी का अपने माता-पिता के प्रति यह पुनीत कर्तव्य बनता है कि वह सदैव उनका सम्मान करे। सभी माता-पिता यही चाहते हैं कि उनका पुत्र बड़ा होकर उनका नाम रोशन करे । बड़े होकर उत्तम स्वास्थ्य, धन व यश आदि की प्राप्ति करे ।
इसके लिए वह हमेशा अनेक प्रकार के त्याग करते हैं। इन परिस्थितियों में विद्यार्थी का यह दायित्व बनता है कि वह पूरी लगन और परिश्रम के साथ अध्ययन करें तथा अच्छे अंक प्राप्त करें। साथ ही अच्छा चरित्र धारण करने का प्रयत्न करे।
गुरुओं, शिक्षकों अथवा शिक्षिकाओं के प्रति विद्यार्थी का परम कर्तव्य है कि वह सभी का आदर करे तथा वह जो भी पाठ पढ़ाते हैं वह उसे ध्यानपूर्वक सुनकर आत्मसात करे। वह जो भी कार्य करने के लिए कहते हैं उसे तुरंत ही पूर्ण करने की चेष्टा करें। गुरु का उचित मार्गदर्शन विद्यार्थी को महानता के शिखर की ओर ले जाने में सक्षम है।
विद्यार्थी का समाज व राष्ट्र के प्रति भी दायित्व बनता है। उसे अपने देश व समाज को उन्नत बनाने में यथासंभव योगदान करना चाहिए। परिवेश को स्वच्छ रखने में मदद करें तथा अपने अन्य सहपाठियों को भी विद्यालय की स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्रेरित करें। इसके अतिरिक्त वह कभी भी उन तत्वों का समर्थन न करे जो समाज व राष्ट्र की गरिमा एवं उसकी संपत्ति को किसी भी प्रकार से हानि पहुंचाते हैं।
जिस प्रकार हम नि:स्वार्थ भाव से अपने परिवार के प्रति तन-मन-धन से समर्पित हो कर पूर्ण रूप से दायित्व उठाते हुए सेवा करते हैं, उसी प्रकार अपने देश के प्रति जिम्मेदारी और कर्तव्य का निर्वाह भी नि:स्वार्थ भाव से करना चाहिए। हम सब एक देश के वासी हैं। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जितना अधिक विस्तार देंगे, देश में उतनी ही सुख समृद्धि व शांति फैलेगी। संकीर्ण मनोवृति का त्याग कर सेवा व आत्मीयता के भाव को जीवन में स्थान देकर ही हम आत्म उन्नति व देशोन्नति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए की देश का मान है तो हमारा मान है क्योंकि हमारा देश ही हमारी पहचान है।