सम्भावनाथक भावका चार वाक्यमा आफ्नो अगामी दिनको वर्णन गर.
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कहानी कुछ इस प्रकार है - माँ एक हिन्दू वृद्धा है। वे हिन्दू समाज की रूढ़िवादी संस्कारों से ग्रस्त हैं। वे संस्कारों की दास हैं। एक मध्यम परिवार में अपने पुराने संस्कारों की रक्षा करना धर्म माना जाता है। माँ भी वहीं करना चाहती थी। उसका बड़ा बेटा अविनाश अपनी माँ की इच्छा के विरुद्ध एक बंगाली लड़की से प्रेम-विवाह कर आया परन्तु माँ ने अपनी रूढ़िवादी मानसिकता के कारण विजातीय बहू को नहीं अपनाया। इसी कारण अविनाश की अपना घर छोड़ना पड़ता है। अब अविनाश की माँ हर समय अपने बेटे के लिए दुखी रहती है। उनका यह दुःख माँ की छोटी बहू उमा से देखा नहीं जाता अत: एक दिन वह अविनाश की बहू से लड़ने के लिए चल पड़ती है। वहाँ जाकर अविनाश की बहू के भोले,सुंदर रूप और व्यवहार पर न्योछावर होकर उमा घर लौट आती है। अचानक कहीं से माँ को खबर लगती है कि अविनाश को हैजे की बीमारी में घेर लिया था और उसकी पत्नी ने अपनी प्राणों की चिंता किए बिना अविनाश को मौत के मुँह में जाने से बचा लिया था। और अब अविनाश की बहू को हैजे की बीमारी ने घेर लिया है। इस पर माँ अपने बेटे को मिलने के लिए बैचैन हो उठती है। वह अपने छोटे बेटे अतुल से उन्हें अविनाश के पास ले चलने की प्रार्थना करती है परंतु अतुल अपनी माँ को समझाता है कि वे तभी अविनाश के घर जाय जब वे बहू को स्वीकार कर घर लाने को तैयार हो। माँ को इस बात का आभास हो जाता है कि यदि बहू को कुछ हो गया तो उनका बेटा अविनाश भी नहीं बचेगा। अविनाश को बचाने की शक्ति केवल उनकी बहू में ही है। अत: वह पुराने संस्कारों की दासता से मुक्त होकर अपने बेटे बहू को अपनाना चाहती है। तब पुत्र-प्रेम की मानवीय भावना का प्रबल प्रवाह रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों के जर्जर होते बाँध को तोड़ देता है। माँ अपने बेटे और बहू को अपनाने का निश्चय करती है। इस तरह कहानी सुखद अंत पर समाप्त होती है।