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दुर्भाति विकार से संबंधित व्यक्ति का एक प्रोजेक्ट तैयार करें
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आतंरिक अनुभव और व्यवहार का एक स्थायी तरीका जो इन लक्षणों को प्रकट करने वाले व्यक्ति की संस्कृति की अपेक्षाओं से स्पष्टतया भिन्न होता है।"[1][2] इसे पहले स्वभाव विकार के नाम से जाना जाता था।
इंटरनेश्नल स्टेटिस्टिकल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज़ एंड रिलेटेड हेल्थ प्रॉब्लम्स (ICD-10), ने भी व्यक्तित्व विकार को परिभाषित किया है। जिसे विश्व स्वास्थ संगठन (वर्ल्ड हेल्थ और्गनाईज़ेशन) द्वारा प्रकाशित किया गया है। व्यक्तित्व विकार ICD-10 Chapter V: Mental and behavioural disorders के अंतर्गत वर्गीकृत किये गए हैं, विशेषकर मानसिक और व्यवहारिक विकारों के अंतर्गत: 28F60-F69.29 वयस्क व्यक्तित्व और व्यवहार के विकार.[3]
आदर्श रूप से व्यक्तित्व विकार के विभिन्न स्वरुप किसी व्यक्ति की व्यवहार संबंधी प्रवृत्तियों की गंभीर समस्याओं से संबद्ध होते हैं, जो आमतौर पर व्यक्तित्व के अनेकों पहलुओं को शामिल करते हैं और लगभग हमेशा ही काफी हद तक निजी और सामाजिक विदारण से जुड़े होते हैं। इसके अतिरिक्त कई परिस्थितियों में व्यक्तित्व विकार अनम्य और व्यापक होता है, जो काफी हद तक ऐसे व्यवहार के आत्म-अनुरूपता (अर्थात यह प्रवृत्ति उस व्यक्ति की आत्म एकात्मकता के सामान होती है) के कारण होता है और इसलिए वह व्यक्ति इसे उचित समझता है। इस प्रकार के व्यवहार के फलस्वरूप सम्बंधित व्यक्ति सामंजस्य स्थापित को हतोत्साहित करने करने का दोषपूर्ण कौशल ग्रहण करने लगता है जो उन निजी समस्याओं का कारण बन सकता है जिनसे सम्बंधित व्यक्ति अत्यधिक चिंता, बेचैनी और अवसाद का शिकार हो सकता है।[4]
व्यवहार संबंधी इन प्रवृत्तियों की शुरुआत आदर्श रूप से किशोरावस्था के बाद के चरणों से वयस्कता की शुरूआत के बीच देखी जा सकती है और कुछ असामान्य मामलों में यह बचपन में भी देखी जा सकती है।[1] इसलिए यह असंभव ही है कि व्यक्तित्व विकार का निदान 16 या 17 साल की उम्र से पहले करवाना उचित होगा। निदान संबंधी सामान्य निर्देश जो सभी प्रकार के व्यक्तित्व विकारों के लिए लागू होते हैं, वे नीचे दिए जा रहे हैं, इनके हेतु पूरक वर्णन प्रत्येक उप प्रकार के साथ दिए गए हैं।
व्यक्तित्व विकार का निदान काफी व्यक्तिपरक हो सकता है; हालांकि, अनम्य और विस्तृत व्यवहारिक प्रवृत्तियों के कारण प्रायः काफी गंभीर निजी और सामाजिक समस्याएं हो जाती हैं और साथ ही सामान्य क्रियाओं में भी व्यवधान पड़ता है। अनुभूति, विचार और व्यवहार की अनम्य और अविरत प्रवृत्तियां आधारभूत विशवास प्रणाली के कारण जनित मानी जाती हैं और इन प्रणालियों की ओर स्थायी कल्पनाओं या "डिसफंक्शनल इस्कीमेटा" (कॉगनिटिव मॉड्यूल्स) के नाम से संकेत किया जाता है।
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