Psychology, asked by anuraggmailcom2610, 8 months ago

समूह निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

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Answered by 19950411mukeshdubey
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Answer:

व्यक्तियों का समूह:-   समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह होता है। किसी भी समूह का निर्माण एक अकेले व्यक्ति द्वारा नहीं हो सकता।

v उद्देश्य पूर्ति :-  प्रत्येक समूह का निर्माण किसी न किसी उद्देश्य के कारण ही होता है जिसमें प्रत्येक सदस्य साथ मिलकर उद्देश्य की प्राप्ति करते है।  समूह के सदस्यों में कार्य-विभाजन कर दिया जाता है।

v सामान्य रुचि :- किसी भी समूह का निर्माण उन्ही व्यक्तियों द्वारा होता है जिनकी रुचि एक समान होती है जैसे-एक सी पसंद का होना,खेलना-कूदना आदि।

v एक समान हित - मनुष्य एक स्वार्थी प्राणी है, जब व्यक्ति का हित समान होता है तो वह समूह का निर्माण करना आरंभ कर देता है । विरोधी हितों वाले व्यक्ति का समूह का निर्माण करना असंभव हो जाता है।

v लक्ष्य :- कोई समूह, समूह के रुप में उसी समय तक कायम रह सकता है जब तक वह किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतू एक साथ मिलकर प्रयास करते है। यदि लक्ष्य प्राप्ति न हो तो समूह में एकता की भावना नहीं रह पायेगी और समूह टूट जायेगा ।

v ऐच्छिक सदस्यता:- समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है इसका तात्पर्य यह है कि सदस्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतू समूह को स्वीकारता है। व्यक्ति सभी समूहों का सदस्य नही बनता वरन् उन्ही समूहो की सदस्यता ग्रहण करता है जिनमें उसके हितों, आवश्यकताओं  एवं रुचियों की पूर्ति होती हो।

v स्तरीकरण:- समूह मे सभी व्यक्ति समान पदों पर नहीं होते वरन् वे अलग-अलग प्रस्थिति एवं भूमिका निभाते है। अतः समूहों में पदों का उतार-चढ़ाव पाया जाता है।

v सामूहिक आदर्श:- प्रत्येक समूह में सामूहिक आदर्श एवं प्रतिमान पाए जाते है जो सदस्यों के पारस्परिक व्यवहारों को निश्चित करते है उन्हे एक स्वरुप प्रदान करते हैं। प्रत्येक सदस्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समूह के आदर्शो एवं प्रतिमानों जैसे प्रथाओं, कानूनों, लोकाचारों, जनरीतियों आदि का पालन करें।

v स्थायित्व:- समूह में थोड़ी बहुत मात्रा में स्थायित्व भी पाया जाता है। यद्यपि कुछ समूह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के बाद ही समाप्त हो जाते हैं। फिर भी वे इतने अस्थिर नही होते कि आज बने और कल समाप्त हो गए।

v समझौता:- समझौता मनुष्य के लिए प्रत्येक स्तर पर अत्यंत ही आवश्यक होता है। किसी भी समूह की स्थापना तभी सम्भव है जब उसके सदस्यों में समूह के उद्देश्यों, कार्य-प्रणाली, स्वार्थ पूर्ति, नियमों, आदि को लेकर आपस में समझौता हो।

v ढांचा:- प्रत्येक समूह के नियम,कार्यप्रणाली, अधिकार, कर्तव्य, पद एवं भूमिकाएं, आदि तय होते है। इसी आधार पर यह एक संरचना या ढांचा का निर्माण करते है और सदस्य उन्हीं के अनुसार आचरण करते हैं।

v अन्त र्वैयक्तिक सम्बन्ध:-  प्रत्येक समूह में परस्पर अन्तः क्रिया का होना अत्यंत ही आवश्यक होता है। जब तक वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ अन्तः क्रिया नहीं करेगा जब तक वह समूह का सदस्य नहीं हो सकता । अतः समूह में अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्ध का होना अत्यंत ही आवश्यक होता है।

v आदान प्रदान:- सहयोग एवं आदान-प्रदान से ही समूह के सदस्य अपने सामान्य हितों की पूर्ति कर पाते है। इसी सहयोग एवं आदान-प्रदान के आधार पर समूह के सदस्य एक-दूसरे के कष्ट में सहयोग एवं सहायता भी करते है।

v स्पष्ट सख्या:-  स्पष्ट संख्या के संदर्भ में अनेक विद्वानों की अलग-अलग राय है। लक्ष्य के आधार पर समूह संख्या का निर्धारण किया जाना चाहिए। एक सामाजिक समूह में सदस्यों की संख्या स्पष्ट होना चाहिए जिससे उसके आकार एवं प्रकार को स्पष्ट रूप से समझा जा सकें ।

अतः उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर समूह को समझा जा सकता है।

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