समाज एवं युवा चेतना पर निबंध
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सौरभ मालवीय
यूवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है. युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं. युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं. युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं. युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं. उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं. समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है. देश के स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं ने अपनी शक्ति का परिचय दिया था.
भारत एक विकासशील और बड़ी जनसंख्या वाला देश है. यहां आधी जनसंख्या युवाओं की है. देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है. यहां के लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं. यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहेगी. विश्व की लगभग आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है. अपनी बड़ी युवा जनसंख्या के साथ भारत अर्थव्यवस्था नई ऊंचाई पर जा सकता है. परंतु इस ओर भी ध्यान देना होगा कि आज देश की बड़ी जनसंख्या बेरोजगारी से जूझ रही है. भारतीय संख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है. देश में बेरोजगारों की संख्या 11.3 करोड़ से अधिक है. 15 से 60 वर्ष आयु के 74.8 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जो काम करने वाले लोगों की संख्या का 15 प्रतिशत है. जनगणना में बेरोजगारों को श्रेणीबद्ध करके गृहणियों, छात्रों और अन्य में शामिल किया गया है. यह अब तक बेरोजगारों की सबसे बड़ी संख्या है. वर्ष 2001 की जनगणना में जहां 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वहीं 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई. बेरोजगार युवा हताश हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में युवा शक्ति का अनुचित उपयोग किया जा सकता है. हताश युवा अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं. वे नशाख़ोरी के शिकार हो जाते हैं और फिर अपनी नशे की लत को पूरा करने के लिए अपराध भी कर बैठते हैं. इस तरह वे अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं. देश में हो रही 70 प्रतिशत आपराधिक गतिविधियों में युवाओं की संलिप्तता रहती है.
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समाज एवं युवा चेतना पर निबंध
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- आम बोलचाल में, शब्द 'समाज' का उपयोग कई अर्थों में किया जाता है, उदाहरण के लिए, व्यक्तियों के एक समूह को एक समाज कहा जाता है। इस शब्द का प्रयोग कुछ विशिष्ट संस्थाओं जैसे ब्रह्म समाज (समाज) या आर्य समाज के लिए भी किया जाता है।
- समाज न तो पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का एक समूह है और न ही उनके साथ मिलकर उनकी असहमति पर नजर रखने के लिए किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए। समाजशास्त्र में, समाज शब्द का तात्पर्य लोगों के समूह से नहीं बल्कि उनके बीच उत्पन्न होने वाले सहभागिता के मानदंडों के जटिल पैटर्न से है I
- कार्यात्मक रूप से, समाज को पारस्परिक संबंधों में एक जटिल समूहों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की पूर्णता प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। आगे समाज को गतिशील रूप से देखा जा सकता है। समाज को उत्तेजना प्रतिक्रिया संबंध की प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप बातचीत, संचार और सहमति बनती है।
- किसी भी समाज में, युवा एक सामाजिक समूह का गठन करते हैं जो इसकी क्षमता में अव्यक्त है। प्रत्येक समाज का निर्वाह और विकास इस बात पर निर्भर करता है कि युवाओं को वर्तमान वास्तविकताओं में कैसे समाजीकृत किया जाता है और भविष्य की प्रगति के लिए नई क्षमताओं को विकसित करने के लिए रचनात्मक स्थान दिया जाता है।
- हमारे युवाओं को सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक कैसे किया जा सकता है? ज्यादातर समस्या हमारे युवाओं की सामाजिक शिक्षा के भीतर है। इन शैक्षिक रास्तों का इलाका समाज के विभिन्न क्षेत्रों में निहित है। समूह और संस्थाएँ सभी हमारे युवाओं की समाजीकरण प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपने सामाजिक अस्तित्व के प्रति युवाओं के दृष्टिकोण पर चर्चा करने के संदर्भ में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न सामाजिक मामलों पर युवा बिना किसी स्पष्ट स्थिति के सार्वजनिक सामाजिक जीवन में प्रवेश करते हैं।
- हमने जो देखा था वह युवाओं के बीच महत्वपूर्ण सामाजिक चेतना बढ़ाने की दिशा में कुछ समस्याएं और मुद्दे थे। इस प्रकार हमारे युवाओं को सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरुक करने की समस्याओं पर चर्चा से हमें समाज में बुद्धिजीवियों के मुद्दे पर लाया जाता है। हमारे समुदाय में, शक्ति का स्थान विभिन्न बुद्धिजीवी समूहों के बीच केंद्रित है। यह समाज की दिशा को प्रभावित करने और आकार देने के लिए अपने निपटान में उपकरण और संसाधन हैं।