समाज की भूमिका (महिलाएं सहयोग)
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किसी भी समाज एवं देश यहां तक कि व्यक्ति विकास में भी महिलाओं कि अहम भूमिका एवं सहयोग होता है। व्यक्ति की उत्पत्ति भी बिना महिला के असम्भव है। सहयोग,सहकर्म एवं सहअस्तित्व का प्रथम पाठशाला परिवार है।
महिलाओं की भूमिका
किसी भी समाज एवं देश यहां तक कि व्यक्ति विकास में भी महिलाओं कि अहम भूमिका एवं सहयोग होता है। व्यक्ति की उत्पत्ति भी बिना महिला के असम्भव है। सहयोग,सहकर्म एवं सहअस्तित्व का प्रथम पाठशाला परिवार है। परिवार का मेरुदंड महिलाएं हैं जो सहकारिता पर टिकी हुई हैं अत: जब तक महिलाओं का सक्रिय सहयोग प्राप्त नहीं होगा, सहकारिता आन्दोलन की सफलता दिवा-स्वप्न ही बना रहेगी। सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं का सक्रिय सहयोग से न सिर्फ समाज एवं देश का ही विकास होगा बल्कि महिला समाज का सर्वागीण उत्थान के साथ-साथ सहकारिता आन्दोलन को भी शक्ति, गति एवं दिशा प्रदान की जा सकती है।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत में सहकारिता असफल हुआ है। इसका मुख्य कारण है भारतीय सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं के सक्रिय सहयोग का अभाव। इस क्षेत्र में महिलाओं कि भूमिका बिलकुल ही असंतोषप्रद है। भारत में जितने भी प्रकार की सहकारी समितियाँ बनी हैं उनमें महिलाओं की सहकारी समितियाँ लगभग २% ही हैं। जबकि महिलओं की आबादी लगभग ५०% है। इससे सिद्ध होता है कि सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी लगभग नगण्य सा या बिलकुल ही कम है। यह एक प्रमुख कारण है कि महिलाओं की स्थिति आज दयनीय बनी हुई है। वे दूसरे दर्जे का नागरिक बनने के लिए मजबूर हैं। आज देश के कुल श्रमशक्ति का एक तिहाई श्रमशक्ति महिलाओं का माना जाता है। लेकिन तब भी उसकी आर्थिक एवं सामाजिक हालात पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर की है। यद्यपि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महिलाएं कुटीर उद्योग, कृषि कार्य, डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, मधुमक्खी, बागवानी, दैनिक श्रमिक, बनोत्पाद प्रोसेसिंग कार्य, सूअर पालन आदि अनेक प्रकार के कार्यों में लगी हैं