समाज के भ्रष्ट होने पर शिक्षक ने छात्रों ने क्या किया है ?
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भारतीय समाज में गुरु, अध्यापक, शिक्षक, उस्ताद और आचार्य की महिमा का बखान करतीं बहुत सी मिसालें प्रचलित हैं जो उसे सामाजिक प्रतिष्ठा के शिखर पर स्थापित करती हैं। यही नहीं, विभिन्न अवसरों पर अभी भी गुरु की पूजा के उदाहरण मिलते हैं। यह उस समाज में स्वाभाविक ही था जिसमें शिक्षा की संस्था एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में स्थापित थी। उसके केंद्र में गुरु था जो शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ अपने सहज एवं निष्कपट आचरण द्वारा विद्यार्थियों में नैतिकता और मूल्यों के बीज बोता था। उसके सान्निध्य में विद्यार्थी को मानवीय सामर्थ्य के साथ नया जन्म मिलता था। गुरु और उसके गुरुकुल की व्यवस्था सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार की गई थी और गुरु को दैनिक चिंताओं से मुक्त रखा जाता था।
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