समाज के प्रति हमारा दायित्व
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समाज के प्रति हमारा दायित्व
समाज के प्रति हमारा दायित्व बिल्कुल उसी तरह है जैसा कि हमारा हमारा अपने परिवार के प्रति दायित्व होता है। हम जिस परिवार में जन्म लेते हैं जिस परिवार में रहते हैं, तो उस परिवार अर्थात उस परिवार सदस्यों के प्रति हमारा कुछ दायित्व बनता है। चाहे वो माता-पिता हो, पत्नी, भाई-बहन या पुत्र-पुत्री आदि हों।
समाज भी हमारे परिवार की तरह होता है। ये एक वृहद स्तर का परिवार अर्थात बहुत बड़ा परिवार होता है। जब हम किसी समाज में जन्म लेते हैं तो स्वतः ही हमें कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। समाज हमें संस्कार देता है। जीवन को जीने की शैली सिखाता है। हमें अनुशासन में रहना सिखाता है। हमें नियमों के अनुसार आचरण करने की कला सिखाता है। हमें नैतिकता का पाठ पड़ाता है।
कुल मिलाकर समाज हमें असभ्य नागरिक से सभ्य नागरिक बनाता है, वरना हम जब इस दुनिया में आते हैं तो क्या होते हैं। समाज में रहकर ही तो हम मानव से सभ्य मानव बनते हैं। जब समाज हमें इतना कुछ देता है तो क्या हमारा दायित्व नही बनता कि हम समाज को बदले में कुछ दें।
हमारा ये परम कर्तव्य है कि समाज के प्रति अपने दायित्व को पूरी तरह से निभायें। हमें जो कुछ समाज से मिला है वो समाज को लौटायें। हमें जो शिक्षा मिली उस शिक्षा को आगे बढ़ायें, हम किसी योग्य बने हैं तो हम कुछ ऐसे कार्यों को करें जिससे अन्य लोग भी आगे बढ़ सकें। हम सम्पन्न हैं तो अपने धन का सदुपयोग जरूरतमंदों और निर्धनों की मदद करके कर सकते हैं आखिर हमारी ये सम्पन्नता समाज की ही तो देन है। हम ज्ञानी हैं तो उस ज्ञान का प्रसार करें ताकि और लोग भी उस ज्ञान से लाभान्वित हों। यदि हमारा समाज किसी विषय या मुद्दे पर कमजोर है या हमारे समाज में कोई कुरीति या बुराइयां पैदा हो गयी हैं तो हम अपने समाज को सुधारने की दिशा में कुछ प्रयास करें।
सरल शब्दों में कहें तो हम जो कुछ भी बनते है उसमें जितना योगदान हमारे परिश्रम को होता है उतना ही योगदान हमारे समाजिक ढांचे का होता है। इसलिये समाज से हमें जो कुछ मिला है, उसे लौटाना हम सबका दायित्व है।