समाज के सुख का मूल क्या है
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सुख का मूल धर्म है और धर्म का मूल वेद, और वेद का मूल ईश्वर है। धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रयनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।
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Explanation:
सुख का मूल धर्म है और धर्म का मूल वेद, और वेद का मूल ईश्वर है।
किसी भी प्राणधारी की गतिविधियों का मूल कारण सुख की इच्छा होती है। यह एक स्वयमसिद्ध तथ्य है। हम सभी सुख की आकांक्षा से ही किसी कार्य के लिए प्रेरित होते हैं। लेकिन सभी को हमेशा सुख नहीं मिलता। सुख के लिए सदाचार की आवश्यकता है, धर्म की जरूरत होती है। धर्म वह है जिनको धारण करने से अर्थ, काम और मोक्ष मिलता है। मनुस्मृति के अनुसार धर्म के दस लक्षण हैं जिनको धारण कर कोई धार्मिक कहलाता है—
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