१. समाज के सीमान्त वर्ग के लोग अपने अधिकारों का उपयोग क्यों नहीं कर पाते? विवेचन करें।
Answers
Answer:
Explanation:
जब कामकाजी दफ्तरों और शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत आधार पर भेदभाव के मामले सामने आ रहे हैं, उसी समय में भारत के दलित युवा भेदभाव वाली परंपराओं को चुनौती भी दे रहे हैं.
इसी साल मई के महीने में गुजरात के राजकोट जिले के धोराजी इलाके में सामूहिक विवाह समारोह में 11 दलित दूल्हे शामिल थे. अपनी बारात में ये दलित लड़के घोड़ों पर बैठे हुए थे.
छोटे स्तर पर ही सही, लेकिन इस इलाके के लिए एक अहम बदलाव था क्योंकि अब तक यहां बारात में घोड़ों पर बैठने की परंपरा केवल सवर्णों में ही थी.
यही वजह है कि इस शादी समारोह को लेकर इलाके में जातिगत तनाव उत्पन्न हो गया था और इस आयोजन के दौरान पुलिस सुरक्षा मांगी गई थी.
इस सामूहिक विवाह के आयोजकों में शामिल योगेश भाषा ने बीबीसी को बताया कि दलित समुदाय यह बताना चाहता है कि वे अब किसी तरह का भेदभाव नहीं सहेंगे. योगेश के मुताबिक धारोजी इलाके के ज़्यादातर दलितों ने अच्छी शिक्षा हासिल की है.
भेदभाव को चुनौती दे रहा है भारत का दलित समाज
भेदभाव को समाप्त करने के संदेश
उन्होंने बताया, "बहुत बड़ी संख्या में छात्रों ने इंजीनियरिंग, मेडकिल और लॉ की पढ़ाई की है. क्या वे अपने जीवन में किसी भी भेदभाव का सामना करेंगे? भेदभाव को समाप्त करने के संदेश के साथ ही हमने सामूहिक बारात निकाली थी."
यह कोई इकलौती घटना नहीं है. पूरे भारत में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है जहां दलित समुदाय के लोग हरसंभव तरीके से समाज में अपने अस्तित्व को दृढ़ता से रख रहे हैं- चाहे वह घोड़े पर चढ़ने या फिर मूछें रखने जैसी सामान्य दिखने वाली बातें ही क्यों ना हो.
दलितों की बढ़ती आकांक्षाओं के चलते भी दलित और गैर-दलित समुदाय के बीच संघर्ष बढ़ रहा है. दिलचस्प यह है कि इनमें से ज्यादातर लोग पढ़े लिखे हैं और भीमराव आंबेडकर के उन विचारों से प्रभावित हैं जिसमें उन्होंने दलितों से शिक्षित होने, एकजुट होने और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए संघर्ष करने का संदेश दिया था.
दलित अधिकार कार्यकर्ता और लेखक मार्टिन मैकवान के मुताबिक दलितों का प्रतिरोध एक तरह से शोषित वर्ग के लोगों की ओर से मिलने वाली चुनौतियों की शुरुआत भर है.
वे कहते हैं, "ऐसे मामलों की संख्या बढ़ती जाएगी क्योंकि शिक्षित दलित अब अपनी आजीविका के लिए गांव और शहर के अमीर लोगों के रहम पर नहीं हैं. उनकी निर्भरता अब शहरी क्षेत्रों के श्रम बाजार पर टिकी है."