'समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही' - इस वाक्य से लेखक का
क्या तात्पर्य है?
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अगर समाज में लोगों को साहसी बहादुर नहीं बनाओगे। तो लोग एक जिंदा लाश की तरह बन जाएंगे सिर्फ़ ऐसे लोग समाज मे बचेंगे जो असत्य के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकेंगे .
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शायद फिर वो तक़दीर मिल जाये जीवन के वो हसीं पल मिल जाये चल फिर से बैठें वो क्लास कि लास्ट बैंच पे शायद फिर से वो पुराने दोस्त मिल जाएँ ।
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