समाजीकरण के कितने सिद्धांत होते हैं
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समाजीकरण कैसे होता है? कौन-सी अभिप्रेणाएँ है जो बालक को किसी क्रिया को करने के लिए प्रेरित करती है? इन प्रश्नों के उत्तर के संदर्भ मे कई विचारकों ने सिध्दांतों का प्रतिपादन किया हैं। इनमे कूले, जाॅर्ज मीड, चालर्स हाॅर्टन, दुर्खीम, सिग्मंड फ्रायड का सिद्धांत प्रमुख हैं। समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति के आत्म या स्व का विकास होता है। इसके विकास की प्रक्रिया को विद्वानों ने अपने-अपने सिद्धांतों द्वारा स्पष्ट किया हैं। समाजीकरण के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं---
1. दुर्खीम का सिद्धांत
दुर्खीम ने समाजीकरण के सिद्धांत मे सामूहिक प्रतिनिधित्व की अवधारणाओं के आधार पर अपने समाजीकरण सम्बंधित विचार दिए है।
दुर्खीम ने व्यक्तिगत चेतना तथा सामूहिक चेतना, इन दो प्रकार की चेतनाओं का अस्तित्व माना है। व्यक्तिगत चेतना से ही सामूहिक चेतना का निर्माण होता है। यह सामूहिक चेतना ही सामूहिक प्रतिनिधियों को जन्म देती है। दुर्खीम के अनुसार प्रत्येक समाज मे कुछ विचार, धारणाएं एवं मान्यताएं ऐसी होती है जिन्हे समाज के सभी सदस्य मानते है। अतः ये समूह का प्रतिनिधित्व करती है। परम्पराएं, रीति-रिवाज, धर्म, मूल्य, आर्दश, प्रथाएं, आदि सामूहिक प्रतिनिधान के ही उदाहरण है। इनकी उत्पत्ति व्यक्ति विशेष से न होकार समाज के अधिकांश व्यक्तियों द्वारा होती है। अतः समूह के सभी लोग इनका पालन करते है। इनके पीछे नैतिक दबाव होता है। इनकी अवहेलना करने पर दण्ड दिया जाता हैं।
2. कूले का स्व दर्पण का सिद्धांत
कुले के अनुसार व्यक्ति का स्व अथवा आत्म वास्तव मे आत्म दर्पण है अर्थात् दूसरों का उसके प्रति दृष्टिकोण एवं मूल्याकंन है जिसमे व्यक्ति दूसरों की दृष्टि मे अपने को देखता है। स्व के विकास के प्रारंभिक स्तर पर व्यक्ति अपने को दूसरों की दृष्टि से देखता है अर्थात् दूसरों की दृष्टि से अपना मूल्यांकन करता है। अपने बारे मे कोई विचार वह इस आधार पर बनाता है कि दूसरे उसके बारे मे क्या सोचते है, धीरे-धीरे वह दूसरों के विचार एवं दृष्टिकोण को अपने मे समाविष्ट करता हैं।
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