Social Sciences, asked by Rajapower89, 1 year ago

समाजीकरण में शिक्षा की क्या भूमिका है

Answers

Answered by tlu85289p7p0j1
19
सामाजीकरण (Socialization) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मनुष्य समाज के विभिन्न व्यवहार, रीति-रिवाज़, गतिविधियाँ इत्यादि सीखता है। जैविक अस्तित्व से सामाजिक अस्तित्व में मनुष्य का रूपांतरण भी सामाजीकरण के माध्यम से ही होता है। सामाजीकरण के माध्यम से ही वह संस्कृति को आत्मसात् करता है। सामाजीकरण की प्रक्रिया मनुष्य का संस्कृति के भौतिक व अ-भौतिक रूपों से परिचय कराती है। सीखने की यह प्रक्रिया समाज के नियमों के अधीन चलती है। समाजशास्त्र की भाषा में कहें तो समाज में अपनी परिस्थिति या दर्जे के बोध और उसके अनुरूप भूमिका निभाने की विधि को हम सामाजीकरण के ज़रिये ही आत्मसात् करते हैं। सामाजीकरण व्यक्ति को सामाजिक रूप से क्रियाशील बनाता है। इसी के माध्यम से संस्कृति के अनुरूप आचरण करने का विवेक विकसित होता है। इसके लिए व्यक्ति द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों का जो अभ्यंतरीकरण किया जाता है वह सामाजीकरण का ही रूप है।

पर सामाजीकरण के विश्लेषण और अध्ययन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीखने की प्रक्रिया में सामाजिक मानदण्डों व संस्कृति की सबसे ज़्यादा अहमियत होती है। इन्हें अस्वीकार कर जो कुछ सीखा जाता है, जैसे हत्या, चोरी या अन्य आपराधिक वारदातें करना, उन्हें सामाजीकरण में नहीं गिना जाता बल्कि इनकी गिनती विपथगामी व्यवहार में होती है। इन्हें सीखने वाला व्यक्ति समाज की मुख्यधारा के विपरीत माना जाता है। वह समाज में सकारात्मक योगदान देने की अवस्था में भी नहीं रहता है। इन नकारात्मक क्रियाओं और आचरणों को प्रायः विफल सामाजीकरण के उदाहरण की तरह देखा जाता है। इस प्रकार सामाजीकरण व्यक्ति को समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बना कर समाज की क्रियाओं में भाग लेने में समर्थ बनाता है। सामाजीकरण की एक सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह जीवन-पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति की परिस्थिति व सामाजिक भूमिकाएँ बदलती रहती हैं और उनके अनुरूप व्यवहार के लिए उसे आचरण तथा व्यवहार के नये प्रतिमान सीखने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए बचपन में जहाँ बच्चा सामाजीकरण के माध्यम से माता-पिता, संबंधियों व बुज़ुर्गों से व्यवहार करना सीखता है, वहीं युवावस्था में उसे नये सिरे से दफ्तर में अपने सहयोगियों, वरिष्ठों, पड़ोसियों आदि से व्यवहार के तौर-तरीकों को सीखना पड़ता है। यहाँ तक कि वृद्धावस्था में भी व्यक्ति नयी भूमिकागत अपेक्षाओं के अनुसार संबंधित सामाजिक व्यवहार ग्रहण करता है। इस प्रकार सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक लगातार चलती रहती है।

Answered by AbsorbingMan
19

आज प्रतिस्पर्धा की दुनिया है और हम सभी अपने बेहतर भविष्य के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ उत्पादन देना चाहते हैं। हर कोई अपना सुरक्षित भविष्य चाहता है। इस पहलू में कुछ लोग कड़ी मेहनत करके पैसा कमा रहे हैं और कुछ लोग अपने रास्ते से विचलित होकर अपराध की दुनिया में चले जाते हैं। यह ज्यादातर राजनीतिक दलों द्वारा समाज के एक विशेष वर्ग की उपेक्षा के कारण और मनुष्यों में बुनियादी नैतिक और सामाजिक मूल्यों की कमी के कारण है। वे अपने राजनीतिक भाषणों में बहुत कुछ कहते हैं लेकिन उसके बाद वे अपनी मस्ती और विलासिता की दुनिया में खो गए। एक बेहतर समाज और आगे स्वस्थ राष्ट्र बनाने की दिशा में बुनियादी बात शिक्षा है। कोई शक नहीं कि सरकार इस दिशा में बहुत कुछ कर रही है, लेकिन जिस तरह से हो रहा है वह सही नहीं है। सरकार का मूल उद्देश्य बच्चों को एकता और नैतिक और सामाजिक मूल्यों का पाठ पढ़ाना होना चाहिए ताकि वे अपने सही रास्ते से विचलित न हों।



गाँवों और पिछड़े क्षेत्रों के लोगों को अपने जीवन में शिक्षा के महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों के छात्रों को उनके अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह उनके आत्मविश्वास और उनमें सीखने और प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ाएगा जो उनके लिए और राष्ट्र के लिए भी अधिक फायदेमंद होगा क्योंकि यह न केवल एक विशाल भीड़ पैदा करेगा बल्कि एक विशाल जनशक्ति जो राष्ट्र को बढ़ावा देगा। सरकारी स्कूलों के मानक को ऊपर उठाना चाहिए। अगर उन्हें बचपन से ही एकता और देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाए तो वे राष्ट्र में सकारात्मक बदलाव लाएंगे और हमारा राष्ट्र पहले की तुलना में बहुत बेहतर काम करेगा। भारत जैसी बड़ी जनशक्ति निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था और सामाजिक मानक भी बढ़ाएगी। और फिर वह दिन दूर नहीं होगा जब भारत दुनिया की अग्रणी महाशक्ति होगा और फिर विदेशी छात्र अपने उच्च अध्ययन के लिए भारत आएंगे और हर कोई गर्व से कहेगा कि हम भारतीय हैं।

Similar questions