समाज में महिला का सम्मान पर अनुच्छेद
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नारी का सम्मान सदा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: (भावार्थ- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।) किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है।
यह बेहद चिंताजनक बात है। आइए देखते हैं हम नारी का कैसे सम्मान करें।
नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में देखने में आता है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।
किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। (सिर्फ) मेरी बीवी व मेरे बच्चे यही आजकल परिवार की परिभाषा रह गई है। फिर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करे? यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।