समाज में पाठशालाओं, स्कूलो अथवा शिक्षा की दूसरी दुकानों की कमी नही है। छोटे से छोटे बच्चे को माँ - बाप
स्कूल भेजने की जल्दी करते है। दो- ढाई साल के बच्चे को भी स्कूल में बिठाकर आ जाने का आग्राह भी घर में
बना हुआ है। उसके विपरित हर घर की दूसरी सच्चाई यह भी है कि कोई भी माँ बाप बालकों के बारे में बालकों
की सही शिक्षा के बारे में और साथ ही सच्चा एंव अच्छा माता पिता अथवा अभिभावक होने का शिक्षण कहीं से भी
प्राप्त नही करता। माता-पिता बनने से पहले किसी भी नौजवान जोड़े को यह नही सिखाया जाता है। कि माँ-बाप
बनने का अर्थ क्या है? इससे पहले किसी भी जोड़े को यह भी नही सिखाया जाता कि अच्छे और सच्चे दाम्पत्य की
शुरूआत
कैसे की जानी चाहिए। पति-पत्नी होने का अर्थ क्या है यह भी कोई नही बताता परिणाम साफ है जीवन
शुरू होने से पहले ही घर टूटने बिखरने लगते है घर बसाने की शाला न आज तक कहीं खुली है औ न खुलती
दिखती है। समाज और सन्ता दोनो या तो इस संकट के प्रति सजग नही है या फिर इसे अनदेखा कर रहे है।
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समाज में पाठशालाओं, स्कूलो अथवा शिक्षा की दूसरी दुकानों की कमी नही है। छोटे से छोटे बच्चे को माँ - बाप
स्कूल भेजने की जल्दी करते है। दो- ढाई साल के बच्चे को भी स्कूल में बिठाकर आ जाने का आग्राह भी घर में
बना हुआ है। उसके विपरित हर घर की दूसरी सच्चाई यह भी है कि कोई भी माँ बाप बालकों के बारे में बालकों
की सही शिक्षा के बारे में और साथ ही सच्चा एंव अच्छा माता पिता अथवा अभिभावक होने का शिक्षण कहीं से भी
प्राप्त नही करता। माता-पिता बनने से पहले किसी भी नौजवान जोड़े को यह नही सिखाया जाता है। कि माँ-बाप
बनने का अर्थ क्या है? इससे पहले किसी भी जोड़े को यह भी नही सिखाया जाता कि अच्छे और सच्चे दाम्पत्य की
शुरूआत
कैसे की जानी चाहिए। पति-पत्नी होने का अर्थ क्या है यह भी कोई नही बताता परिणाम साफ है जीवन
शुरू होने से पहले ही घर टूटने बिखरने लगते है घर बसाने की शाला न आज तक कहीं खुली है औ न खुलती
दिखती है। समाज और सन्ता दोनो या तो इस संकट के प्रति सजग नही है या फिर इसे अनदेखा कर रहे है।