समाज में समरसता बनाए रखने के लिए टोपी और ऑफफन जैसे पत्रो का होना आवश्यक है. तीन तर्क देकर पुष्टि करे
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एक विकसनशील समाज का लक्षण है कि वह निरंतर अपने आप को बदलता रहता है। अपनी परंपरा को पुनर्व्याख्यायित करता है और नवीन विचारों को अपने पैमानों पर कस कर स्वीकारता है। भारतीय समाज ने निरंतर इस प्रक्रिया को स्वीकार किया है। वह एक ओर अपने परंपरागत मूल्यों को आधुनिक संदर्भों में पुनर्व्याख्यायित करता रहा है तो दूसरी ओर वह आधुनिक विमर्शों को भी स्वीकार करता रहा है। महात्मा गांधी ने अपनी दृष्टि इसी भारतीय समाज से प्राप्त की थी। तात्कालिक समाज में विद्यमान विभिन्न परंपराओं पर उन्होंने पुनर्विचार का आग्रह किया तो कुछ नवीन परंपराओं को आत्मसात करने का विश्वास भी दिखाया। भारतीय समाज की जिन समस्याओं को उन्होंने दूर करने का प्रयास किया वह कमोबेश आज भी हमारे सामने मौजूद हैं।
सामाजिक समरसता के विभिन्न पहलुओं को महात्मा गांधी ने अपने विमर्श को विषय बनाया। अपने लेखन और कर्म से समाज परिवर्तन को संभव कर दिखाया। सामाजिक समरसता के जाति, धर्म, भाषा, वर्ग, लिंग और श्रम जैसे विषयों पर उन्होंने बेबाक टिप्पणियाँ लिखी और समाज में परिवर्तन के प्रति अपनी उत्कंठा प्रकट की। अपने समस्त विचारों और कार्यों में उन्होंने सामाजिक समरसता के लिए प्रयास किया। सामाजिक समरसता के अपने प्रयास में उन्होंने अपने अभियान को घृणा, निंदा के आधार पर नहीं अपितु सत्याग्रह के आधार पर चलाया। अपने से इतर का सम्मान एवं आपसी संवाद ही उनका मुख्य साधन रहा। सामाजिक समरसता के वर्तमान प्रयासों में इस दृष्टि का समावेश हमें करना होगा। यह आलेख सामाजिक समसरता के प्रति उनकी दृष्टि को प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास करेगा।
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एक विकसनशील समाज का लक्षण है कि वह निरंतर अपने आप को बदलता रहता है। अपनी परंपरा को पुनर्व्याख्यायित करता है और नवीन विचारों को अपने पैमानों पर कस कर स्वीकारता है। भारतीय समाज ने निरंतर इस प्रक्रिया को स्वीकार किया है। वह एक ओर अपने परंपरागत मूल्यों को आधुनिक संदर्भों में पुनर्व्याख्यायित करता रहा है तो दूसरी ओर वह आधुनिक विमर्शों को भी स्वीकार करता रहा है। महात्मा गांधी ने अपनी दृष्टि इसी भारतीय समाज से प्राप्त की थी। तात्कालिक समाज में विद्यमान विभिन्न परंपराओं पर उन्होंने पुनर्विचार का आग्रह किया तो कुछ नवीन परंपराओं को आत्मसात करने का विश्वास भी दिखाया। भारतीय समाज की जिन समस्याओं को उन्होंने दूर करने का प्रयास किया वह कमोबेश आज भी हमारे सामने मौजूद हैं।
सामाजिक समरसता के विभिन्न पहलुओं को महात्मा गांधी ने अपने विमर्श को विषय बनाया। अपने लेखन और कर्म से समाज परिवर्तन को संभव कर दिखाया। सामाजिक समरसता के जाति, धर्म, भाषा, वर्ग, लिंग और श्रम जैसे विषयों पर उन्होंने बेबाक टिप्पणियाँ लिखी और समाज में परिवर्तन के प्रति अपनी उत्कंठा प्रकट की। अपने समस्त विचारों और कार्यों में उन्होंने सामाजिक समरसता के लिए प्रयास किया। सामाजिक समरसता के अपने प्रयास में उन्होंने अपने अभियान को घृणा, निंदा के आधार पर नहीं अपितु सत्याग्रह के आधार पर चलाया। अपने से इतर का सम्मान एवं आपसी संवाद ही उनका मुख्य साधन रहा। सामाजिक समरसता के वर्तमान प्रयासों में इस दृष्टि का समावेश हमें करना होगा। यह आलेख सामाजिक समसरता के प्रति उनकी दृष्टि को प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास करेगा.