History, asked by sonalirajput8305200, 6 months ago

समाज से व्यक्ति की गरिमा किस प्रकार निमान हो सकती है​

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Answered by yayayayaya123
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Answered by zakeerabdul
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नागरिकों की गरिमा और आजादी

व्यक्ति की गरिमा और आजादी के मामले में लोकतांित्राक व्यवस्था किसी भी अन्य शासन प्रणाली से काफी आगे है। प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ के लोगों से सम्मान पाना चाहता है। अक्सर, टकराव तभी पैदा होते हैं जब कुछ लोगों को लगता है कि उनके साथ सम्मान का व्यवहार नहीं किया गया। गरिमा और आजादी की चाह ही लोकतंत्रा का आधार है। दुनिया भर की लोकतांित्राक व्यवस्थाऐं इस चीज को मानती हैं- कम से कम सिद्धांत के तौर पर तो जरूर अलग-अलग लोकतांित्राक व्यवस्थाओं में इन बातों पर अलग-अलग स्तर का आचरण होता है। लोकतांित्राक सरकारें सदा नागरिकों के अधिकारों का सम्मान नहीं करती ।
(1) फिर जो समाज लंबे समय तक गुलामी में रहे हैं उनके लिए यह एहसास करना आसान नहीं है कि सभी व्यक्ति बराबर हैं।
(2) यहाँ िस्त्रायों की गरिमा का ही उदाहरण लें। दुनिया के अधिकांश समाज पुरूष-प्रधान समाज रहें है। महिलाओं के लंबे संघर्ष के बाद अब जाकर यह माना जाने लगा है कि महिलाओं के साथ गरिमा और समानता का व्यवहार लोकतंत्रा की जरूरी शर्त है और आज अगर कहीं यह हालत है, तो उसका यह मतलब नहीं कि औरतों के साथ सदा से सम्मान का व्यवहार हुआ है। बहरहाल, एक बार जब सिद्धांत रूप में इस बात को स्वीकार कर लिया गया है तो अब औरतों के लिए वैधानिक और नैतिक रूप से अपने प्रति गलत मान्यताओं और व्यवहारों के खिलाफ संघर्ष करना आसान हो गया है।
(3) अलोकतांित्राक व्यवस्था में यह बात संभव न थी। क्योंकि वहाँ व्यक्तिगत आजादी और गरिमा न तो वैधानिक रूप से मान्य है, न नैतिक रूप से।
(4) यही बात जातिगत असमानता पर भी लागू होती है
(5) भारत में लोकतांित्राक व्यवस्था ने कमजोर और भेदभाव का शिकार हुर्इ जातियों के लोगों के समान दर्जे और समान अवसर के दावे को बल दिया है आज भी जातिगत भेदभाव और दमन के उदाहरण देखने को मिलते हैं पर इनके पक्ष में कानूनी या नैतिक बल नहीं होता। संभवत: इसी अहसास के चलते आम लोग अपने लोकतांित्राक अधिकारों के प्रति ज्यादा चौकस हुए है।
(6) लोग विश्वास करते हैं कि इनके मत सरकार के दायित्व तथा इनके अपने स्व सम्मान के लिए अन्तर निर्मित करता है।
(7) लोकतंत्रा से लगार्इ गर्इ उम्मीदों को किसी लोकतांित्राक देश के मूल्यांकन का आधार भी बनाया जा सकता है।
(8) लोकतंत्रा की जांच परख और परीक्षा कभी खत्म नहीं होती। वह एक जाँच पर खरा उतरे तो अगली जाँच आ जाती है लोगों को जब लोकतंत्रा से थोड़ा लाभ मिल जाता है, तो वे और लाभों की माँग करने लगते हैं। वे लोकतंत्रा से और अच्छा काम चाहते हैं। यही कारण है कि जब हम उनसे लोकतंत्रा के कामकाज के बारे में पूछते हैं तो वे हमेशा लोकतंत्रा से जुड़ी अपनी अन्य अपेक्षाओं का पुलिंदा खोल देते हैं और शिकायतों का अंबार लगा देते हैं। शिकायतों का बने रहना भी लोकतंत्रा की सफलता की गवाही देता हैं।







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