समाज शब्द के विभिन्न पक्षों की चर्चा कीजिए या आपके सामान्य बौद्धिक ज्ञान कि समझ से किस प्रकार है
Answers
प्रश्न 2.
‘समाज’ शब्द के विभिन्न पक्षों की चर्चा कीजिए। यह आपके सामान्य बौद्धिक ज्ञान की समझ से किस प्रकार अलग है?
उत्तर
सामान्य रूप से ‘समाज’ शब्द से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। ऐसा कहा जाता है कि जहाँ जीवन है वहीं समाज भी है। ‘समाज’ एक अत्यधिक प्रचलित शब्द है जिसको साधारण बोलचाल की भाषा में व्यक्तियों के समूह के लिए प्रयुक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए–‘आर्य समाज’, ब्रह्म समाज’, ‘धर्म समाज’, ‘विद्यार्थी समाज’ तथा ‘बाल समाज’, आदि शब्दों का प्रयोग व्यक्ति इसी अर्थ में करते हैं। कुछ लोग ‘समाज’ शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के समूह के रूप में अथवा एक समिति या संस्था के रूप में भी करते हैं। इसी कारण समाज के अर्थ के संबंध में काफी अनिश्चितता पायी जाती है। समाजशास्त्र में समाज’ शब्द का प्रयोग जनसाधारण द्वारा लगाए गए इन अर्थों में नहीं होता, वरन् यह एक विशिष्ट अर्थ को प्रतिपादित करता है। समाजशास्त्र एक विज्ञान है तथा विज्ञान होने के नाते इसकी अपनी एक शब्दावली है। वैज्ञानिक शब्दावली में प्रत्येक शब्द को विशिष्ट अर्थ में प्रयोग किया जाता है। ‘समाज’ भी इसी प्रकार का एक शब्द (संकल्पना या अवधारणा) है, जिसका संबंध समाजशास्त्र की शब्दावली से है। इस नाते न केवल इसका स्पष्ट अर्थ है, अपितु इसके विभिन्न पक्षों के बारे में भी किसी प्रकार का संदेह नहीं है।
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार-“समाज रीतियों एवं कार्य-प्रणालियों, प्रभुत्व एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूहों और उनके विभाजनों, मानव-व्यवहार के नियंत्रणों एवं स्वाधीनताओं की एक व्यवस्था है। इस निरंतर परिवर्तनशील जटिल व्यवस्था को हम समाज कहते हैं। यह सामाजिक संबंधों का जाल (Web of social relationships) है और यह सदैव परिवर्तित होता रहता है। समाज की यह परिभाषा समाज के विभिन्न पक्षों को पूर्णतः स्पष्ट करने वाली मानी जाती है। समाज मूर्त न होकर अमूर्त होता है। यह कोई अखंडित व्यवस्था नहीं है अपितु इसमें अनेक समूह एवं उप-समूह पाए जाते हैं। व्यक्तियों के व्यवहार हेतु निश्चित रीतियाँ एवं कार्य-प्रणालियाँ होती हैं जिन्हें संस्थाएँ कहा जा सकता है। संस्थाएँ व्यक्ति को समाज की मान्यताओं के अनुरूप व्यवहार करने हेतु प्रेरित करती हैं। व्यक्ति को स्वतंत्रता तो होती है परंतु वह अन्य व्यक्तियों से व्यवहार हेतु समाज द्वारा मान्य रीतियों में से ही किसी एक का चयन कर सकता है। विभिन्न व्यक्तियों में जो संबंध पाए जाते हैं उन्हीं को समाज कहते हैं। संबंध स्थिर नहीं रहते अपितु निरंतर परिवर्तित होते रहते हैं। इस प्रकार, समाज के विभिन्न पक्ष मिलकर एक जटिल व्यवस्था का निर्माण करते हैं।