समाजवाद धन और उत्पादन के साधनों पर क्या विचार प्रकट करता है
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समाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है।
समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण
समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक
और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर
आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी
प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज
या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक
अर्थों में समाजवाद को पूँजीवाद या मुक्त बाजार के सिद्धांत
के विपरीत देखा जाता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप
में समाजवाद युरोप में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे
उद्योगीकरण की अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है।
ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञापन सी० ई० एम० जोड ने कभी
समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने
अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में सी०
ई० एम० जोड के इस चित्र को काफी सीमा तक रूपायित
करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत
संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें
मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में
लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को
अर्थव्यवस्था के नियम द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने
का मंत्र देती है। भारत में समाजवाद की एक अलग किस्म के
सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। राम मनोहर लोहिया, जय
प्रकाश नारायण और नरेन्द्र देव के राजनीतिक चिंतन और
व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को समाजवाद (Socialism)
एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में
धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के
अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के
तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का
विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि
सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में
होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों में समाजवाद को
पूँजीवाद या मुक्त बाजार के सिद्धांत के विपरीत देखा जाता
है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद युरोप
में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे उद्योगीकरण की
अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है।
ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञानी सी० ई० एम० जोड ने कभी
समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने
अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में सी०
ई० एम० जोड के इस चित्र को काफी सीमा तक रूपायित
करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत
संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें
मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में
लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को
अर्थव्यवस्था के नियम द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने
का मंत्र देती है। भारत में समाजवाद की एक अलग किस्म के
सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। राम मनोहर लोहिया, जय
प्रकाश नारायण और नरेन्द्र देव के राजनीतिक चिंतन और
व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को 'गाँधीवादी समाजवाद' की
संज्ञा दी जाती है।
समाजवाद अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्द 'सोशलिज्म' का हिंदी
रूपांतर है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस शब्द का प्रयोग
व्यक्तिवाद के विरोध में और उन विचारों के समर्थन में किया
जाता था जिनका लक्ष्य समाज के आर्थिक और नैतिक आधार
को बदलना था और जो जीवन में व्यक्तिगत नियंत्रण की जगह
सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे
समाजवाद शब्द का प्रयोग अनेक और कभी कभी
परस्पर विरोधी प्रसंगों में किया जाता है; जैसे समाजवाद
अराजकतावाद, आदिकालीन कबायली साम्यवाद, सैन्य
साम्यवाद, ईसाई समाजवाद, सहकारिता वाद, आदि-यहां तक
कि नात्सी दल का भी पूरा नाम राष्ट्रीय समाजवादी दल' था।
समाजवाद की परिभाषा करना कठिन है। यह सिद्धांत
तथा आंदोलन, दोनों ही है और यह विभिन्न ऐतिहासिक
और स्थानीय परिस्थितियों में विभिन्न रूप धारण करता है।
मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के
समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने
के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य
आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता
है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्ण व्यवस्था का अंत करना है।
साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज
स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को
इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित
वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्ण व्यवस्था का अंत
करना है।