समंक गीली मिट्टी के समान है जिनसे आप इक़छानुसार देवता अथवा राऋस की मूर्ति बना सकते हैं ।व्याख्या कीजिये
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Explanation:
खूंटी : पांच दशकों से खूंटी में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को बनाने में महारत हासिल कर चुके 75 वर्षीय पशुपति शुलाधार मिट्टी की प्रतिमाओं में मौलिकता भरने के साथ जान डालने का काम करते हैं। यही कारण है कि देवी-देवताओं की पूजा में इनकी बनाई मूर्तियों की मांग अधिक होती है। एक फरवरी को बसंत पंचमी है। विद्या की देवी सरस्वती के उपासक अभी से ही पूजा की तैयारी में जुट गए हैं। श्रीहरि मंदिर परिसर में लगभग डेढ़ सौ सरस्वती की प्रतिमा पशुपति की देखरेख में बनाई गई हैं। उनमें से 120 प्रतिमाओं की बु¨कग हो चुकी है। मिट्टी के अलावा सीमेंट की हनुमान और गणेश की प्रस्तर मूर्तियां बनाने में इन्हें महारत हासिल है। मूल रूप से झालदा के मौसीना गांव के रहने वाला यह कलाकार सरस्वती, दुर्गा, काली और विश्वकर्मा की मूर्तियों को बनाकर अपनी आजीविका चलाने के साथ धर्म, कला और संस्कृति के उन्नयनय में अपना योगदान देता आ रहा है। तजना नदी से मिट्टी और कोलकाता से रंग, वस्त्र, मुकुट और साज-सज्जा का सामान लाकर मिट्टी की मूर्तियों में रंग भरने के साथ ही उन्हें अनुप्राणित करने का काम किया जाता है। सरस्वती की मूर्तियों की कीमत पांच सौ रुपये से लेकर ढाई हजार रुपये है। विद्या के मंदिर, घरों और सार्वजनिक चौक-चौराहों पर प्रतिमा पूजन धूमधाम से किया जाता है। सरस्वती पूजा के लिए मूर्तियों की बु¨कग कराने के साथ प्रसाद की व्यवस्था से लेकर सजावट और प्रकाश प्रबंध में लोग जुटे हैं।
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सम्मान पाने की तरस
वयोवृद्ध मूर्तिकार पशुपति कहते हैं कि यद्यपि मूर्ति निर्माण भले ही उनकी आजीविका का साधन है, तथापि सम्मान पाने की ललक सबमें होती है। वे भी सम्मान चाहते हैं। पहले रांची से हस्तशिल्प विभाग के अधिकारी आते थे और उनकी बनाई मूर्तियों की प्रशंसा करते थे। खूंटी प्रखंड से उन्हें हस्तशिल्प कलाकार का प्रमाणपत्र भी मिला था। अबतक हस्त शिल्पी को मिलने वाली पेंशन उन्हें नहीं दी गई है। पश्चिम बंगाल सरकार हस्तशिल्प पेंशन देती है, लेकिन झारखंड में नहीं दिया जा रहा है। उनका पुत्र मोरकंठ मूर्ति निर्माण में सहयोग करता है। कुछ लोगों को मजदूरी देकर भी काम कराया जाता है। मिट्टी की मूर्तियों में कला और रंग भरने में उन्हें आत्मसंतोष मिलता है।