सम कालीन समाज में शिक्षा की भूमिका क्या है
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समकालीन युग वैश्वीकरण का युग है। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक तथा विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र और एक प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की विश्व में वृहत्तर भूमिका की आवश्यकता है। यह भारत के शक्ति संवर्द्धन और आर्थिक उन्नति के लिए भी अपरिहार्य है। भारत के इस लक्ष्य की प्राप्ति के निमित्त उच्चतर शिक्षा में गुणात्मक सुधार, विस्तार और इसका अंतरराष्ट्रीयकरण सर्वाधिक प्रभावी माध्यम हो सकता है। उच्चतर शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण से भारतीयों के अंतरराष्ट्रीय समझ और संपर्क में बढ़ोतरी होगी। विश्व के अन्य विकसित देशों के साथ चलने के लिए भी उच्चशिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीयता शिक्षा प्रणाली में सुधार का प्रधान ध्येय होना चाहिए। अत्यंत तोष का विषय है कि भारत सरकार उच्चतर शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण की पक्षधर है और इस दिशा में अग्रसर है।
शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण से भारतीय छात्र सही मायने में राष्ट्रीय और वैश्विक दृष्टिकोण विकसित कर सकेंगे। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अंतरराष्ट्रीयता समय की आवश्यकता है। वैश्वीकरण के इस युग में अर्थव्यवस्था का अंतर्राष्ट्रीयकरण अनिवार्य है। इस तरह की प्रतियोगिता में बने रहने के लिए उच्च शिक्षा का भी अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है। यह विश्व बाज़ार को समझने और वैश्विक संपर्क का आधार होगा। उदाहरण के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय प्रबंध संस्थान के स्नातकों का अर्थव्यवस्था का ज्ञान और व्यक्तिगत संपर्क स्वाभाविक रूप से अंतरराष्ट्रीय होगा, जो वैश्वीकरण के युग में प्रबंधकों की सफलता का अपरिहार्य सूत्र है। आर्थिक कारणों के इतर भी इस तरह की व्यवस्था की सकारात्मकता व्यापक है।
शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण से भारतीय छात्र सही मायने में राष्ट्रीय और वैश्विक दृष्टिकोण विकसित कर सकेंगे। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अंतरराष्ट्रीयता समय की आवश्यकता है। वैश्वीकरण के इस युग में अर्थव्यवस्था का अंतर्राष्ट्रीयकरण अनिवार्य है। इस तरह की प्रतियोगिता में बने रहने के लिए उच्च शिक्षा का भी अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक है। यह विश्व बाज़ार को समझने और वैश्विक संपर्क का आधार होगा। उदाहरण के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय प्रबंध संस्थान के स्नातकों का अर्थव्यवस्था का ज्ञान और व्यक्तिगत संपर्क स्वाभाविक रूप से अंतरराष्ट्रीय होगा, जो वैश्वीकरण के युग में प्रबंधकों की सफलता का अपरिहार्य सूत्र है। आर्थिक कारणों के इतर भी इस तरह की व्यवस्था की सकारात्मकता व्यापक है।
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